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________________ अन्वयार्थ-(हि) वस्तुतः (सु-सहावो) सुस्वभाव (सीलं) शील है (वदरक्खणं) व्रत-रक्षण (सीलं) शील है (बंभचेर-मयं) ब्रह्मचर्य-मय (सीलं) शील है (य) और (सग्गुण-पालणं) सद्गुणों का पालन (सीलं) शील है। भावार्थ-निश्चयदृष्टि से स्वात्मलीनता-स्वभाव परिणति को ही शील कहा है, यह शील स्वभाव सिद्ध भगवंतों को प्राप्त है। व्रतों की रक्षा में हमेशा तत्पर रहना शील (मर्यादा) है, यह सविकल्प साधकों में मुख्यतः पाया जाता है। ब्रह्मचर्य अर्थात् आत्मचारित्रमय होकर रहना शील है, यह मुख्यत: निर्विकल्प साधकों में होता है और सद्गुणों की रक्षा करना भी शीलव्रत कहलाता है, यह विवेकी गृहस्थों में, साधकों में होता है, होना चाहिए। शील की महिमा देवा समीवमायंति, पूजेंति य भूभुजा। सुग्गदी य परे जम्मे, सीलेण णिम्मलो जसो19॥ अन्वयार्थ-(सीलेण) शील से (णिम्मलो जसो) निर्मल यश होता है (देवा समीवमायंति) देवगण पास में आते हैं (भूभुजा) राजागण (पूजेंति) पूजते हैं (य) और (परे जम्मे) परभव में (सुग्गदी) अच्छी गति (होदि) होती है। भावार्थ-निर्मल शीलव्रत (ब्रह्मचर्य) के पालन करने से देवगण पास आते हैं, राजा लोग पूजा-सम्मान करते हैं, परभव अर्थात् मरण के बाद दूसरे जन्म में सुगति होती है और इस भव तथा परभव में यश फैलता है। नि:शील की दुर्दशा णिस्सीला पुरिसा णारी, इहेव कुक्करा इव। लहंते वध-बंधादि, परत्थे णिरयं परं ॥20॥ अन्वयार्थ-(णिस्सीला) शील रहित (पुरिसा-णारी) पुरुष-स्त्रियाँ (कुक्करा इव) कुत्ते के समान हैं [वे] (इहेव) यहीं पर ही (वध-बंधादि) वध-बंधन आदि (लहंते) पाते हैं [तथा] (परत्थ) परगति में (परं) भयंकर (णिरयं) नरक को [पाते हैं।] भावार्थ-जो पुरुष और स्त्रियाँ शील (एकदेश ब्रह्मचर्य) रहित हैं, वे कुत्तों के समान जिस किसी से भी सम्बन्ध बनाते रहते हैं अथवा सदाचारी लोगों की दृष्टि में वे कुत्तों के समान गिने जाते हैं। वे इस भव में यहाँ पर तो वध-मारपीट, बंधन-कैद की सजा आदि पाते ही हैं तथा मरकर भी वे दूसरे भव में भयंकर नरक को पाते है। स्त्री संगति दुःखदायी जो तवस्सी वदी मोणी, णाण-जुत्तो जिदिदिओ। कलंकेदि हि अप्पाणं, इत्थीसंगेण सो वि य॥21॥ णीदि-संगहो :: 135
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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