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________________ ( बारसंग धारिणी) बारह अंगों को धारण करने वाली (मिच्छत्तंध-णासिणी) मिथ्यात्वरूप अधंकार को नष्ट करने वाली ( सम्मत्त सम्म सासिणी) सम्यक्त्व का सम्यक् रूप से शासन करने वाली (जिणवाणी सारदा सुयदेवी सरस्सदी) जिनवाणी शारदा श्रुतदेवी सरस्वती आदि नामों से युक्त (भारदी जयदु) भारती जयवंत हो। अर्थ- - अज्ञान तम को हरने वाली, सद्ज्ञान श्रुत को करने वाली, सततशान्ति देने वाली, द्वादशांगरूप बारह अंगों को धारण करने वाली, मिथ्यात्व - अंधकार को नाशने वाली, सम्यक्त्व का अच्छी तरह शासन कराने वाली, जिनवाणी, शारदा, श्रुतदेवी तथा सरस्वती आदि नामों से युक्त भारती जयवन्त हो, भारती जयवन्त हो । विसय-विस-रेइया, जम्ममरण - छेत्तिया, जिणवयण - ओसही, पोत्थया सुहारसा । कम्मपुंज- दाहिगा, भवजलहि-तारिगा, जिणवाणी सारदा, सुयदेवी सरस्सदी ॥ जयदु. 4 ॥ अन्वयार्थ - (विसय - विस - रेइया) विषय विष रेचन ( जम्ममरण छेत्तिया) जन्म मरण का छेदन करने हेतु ( जिणवयण - ओसही ) जिनवचन औषधि है (पोत्थया सुहारसा ) शास्त्र ही सुधारस है [ जो] (कम्मपुंज दाहिगा) कर्मपुंज को जलाती है (य) और (भवजलहि तारिगा) भवजलधि से तारती है [ ऐसी ] ( जिणवाणी सारदा सुयदेवी सरस्सदी) जिनवाणी शारदा श्रुतदेवी सरस्वती आदि नामों से युक्त (भारदी जयदु) भारती जयवंत हो । अर्थ - विषयरूपी विष का विरेचन करने हेतु, जन्म-मरण का छेदन करने हेतु जिनवचन ही औषधि है, वस्तुतः शास्त्र ही सुधारस हैं। जो कर्म पुंज को जलाती है, और संसाररूप समुद्र से तारती है, ऐसी जिनवाणी शारदा, श्रुतदेवी तथा सरस्वती आदि नामों से युक्त भारती जयवन्त हो, भारती जयवन्त हो । भारदी - त्थुदी :: 113
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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