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________________ भारदी-त्थुदी (भारती-स्तुति, गायन शैली-जयतु संस्कृतम् ) जयदु भारदी, जयदु भारदी। जिणवाणी सारदा, सुयदेवी सरस्सदी 1॥ अन्वयार्थ-(जिणवाणी सारदा सुयदेवी सरस्सदी) जिनवाणी, शारदा, श्रुतदेवी, सरस्वती [आदि नामों से युक्त] (भारदी जयदु) भारती जयवंत हो (भारती जयदु) भारती जयवंत हो। अर्थ-जिनवाणी, शारदा, श्रुतदेवी तथा सरस्वती आदि नामों से युक्त भारती जयवन्त हो, भारती जयवन्त हो। वीरमुह-णिग्गदा, गोदमादि-गंथिदा, सुद-सूरि-भासिदा, गुणधरादि-विरइदा। कुन्दकुन्द-भारदी, सुदधरादि-धारिदा, जिणवाणी सारदा, सुयदेवी सरस्सदी॥ जयदु, 2॥ अन्वयार्थ-(वीरमुह णिग्गदा) वीरमुख से निर्गत (गोदमादि गंथिदा) गौतम आदि द्वारा ग्रंथित (सुद-सूरि भासिदा) श्रुतसूरिभाषित (गुणधरादि विरइदा) गुणधर आदि द्वारा विरचित (सुदधरादि धारिदा) श्रुतधरों द्वारा धारित (कुन्दकुन्द भारदी) कुन्दकुन्द भारती (जिणवाणी सारदा सुददेवी सरस्सदी) जिनवाणी, शारदा, श्रुतदेवी, सरस्वती आदि नामों से युक्त (भारदी जयदु) भारती जयवंत हो। अर्थ-वीर जिनेन्द्र के मुख से निर्गत, गौतमादि गणधरों द्वारा द्वादशांग रूप से ग्रंथित, श्रुत केवलियों द्वारा कथित, गुणधर, पुष्पदन्त-भूतबली आदि आचार्यों द्वारा विरचित, कुन्दकुन्द-भारती तथा श्रुतधराचार्यों द्वारा धारण की गयी जिनवाणी शारदा, श्रुतदेवी तथा सरस्वती आदि नामों से युक्त भारती जयवन्त हो, भारती जयवन्त हो। अण्णाण-तम-हारिणी, सण्णाण-सुद-कारिणी, सदद-संतिदाइणी, बारसंग-धारिणी। मिच्छतअंध-णासिणी, सम्मत्त-सम्म-सासिणी, जिणवाणीसारदा, सुयदेवी सरस्सदी॥जयदु 3॥ अन्वयार्थ-(अण्णाण तम हारिणी) अज्ञानतम को हरने वाली (सण्णाण सुद कारिणी) सद्ज्ञान श्रुत को करने वाली (सदद संतिदायिणी) निरंतर शांति देने वाली 112 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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