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________________ में कौन हैं मेरे, सभी इस संसार से चले गये। 42 ओमो दिढी हु बहणोइ समक्ख-भासे अस्सिं भवे भमण एव ण सार-किंचि। सो मेरठे विमलसायर-पादमूले छुल्लक्क-चारुचरियं चरएज्ज संघे॥2॥ ओम दृढ़ संकल्पी अपने बहनोई के समक्ष कहता कि इस संसार में भ्रमण के अतिरिक्त कुछ भी सार नहीं। वे मेरठ में आ. विमलसागर के पादमूल में क्षुल्लक चर्या को प्राप्त संघ में विचरण करने लगते हैं। 43 अत्थेव मादु-जयमाल-असार-लोए रागी ण सा वि हु विरागिय रोग काले। तंणेमिसागर-पदं कुलभूसणो सो। सावण्ण-सुक्क-अडमीइ विसे अडेरे॥3॥ यहाँ मातुश्री जयमाला भी असार संसार में रागी नहीं विरागी बनी, पर रोग ग्रस्त हो गयी। वे ओम-जो कुलभूषण ब्रह्मचारी थे क्षुल्लक नेमिसागर के पद को प्राप्त होते हैं। श्रावण शुक्ला अष्ठमी 2018 में। सासदधाम-सम्मेद सिहरं पडिगमणं 44 गामाणुगाम चरमाण-ससंघ-सुत्ता सम्मेद सेल सिहरं पडि सव्व-साहू। रम्मं सुठाण-मणुहारि-मणुण्ण-माणं सो खुल्लगो दिढवदी तवसी भणेज्जा 144॥ आ. विमलसागर ससंघ ग्रामानुग्राम सूत्रबद्ध विचरण करते हुए सम्मेद शैल शिखर की ओर गतिशील होते हैं। वे रम्य, उत्तम, मनोहारी एवं मनोज्ञ स्थान तथा मान को प्राप्त होते हैं। वे क्षुल्लक दृढ़व्रती, तपस्वी कहलाने लगते हैं। 45 सो णेमिसागर पदेस पदेस मज्झं छत्तीसगड्ड बहु गच्छ चरंतमाणं। 76 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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