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________________ 15 खेत्ते वि पंत- बहुगा बहु णीर - वाही धण्णप्पपुण्ण-हरिदा वि धणग्गि एसो । दाहिण पेच्छिम पुरिल्लय उत्तरो वि तेसुं च गाम-पुर-ढाणि - पमाणि खेत्त ॥15 ॥ इस क्षेत्र ( भरत क्षेत्र) में अनेक प्रान्त हैं, वे नीर - वाही (सरिताओं) से पूर्ण, धान्य एवं हरियाली युक्त धन धान्य देने में अग्रणी हैं। दक्षिण-पश्चिम पूर्व एवं उत्तर आदि जो क्षेत्र हैं उनमें ग्राम नगर, ढाणी आदि भी बहुत हैं । परिवेसो परिवारस्स 16 तेसुं च जादि-उवजादि - पहाण - खेत्ता विप्पाण खत्तिय गणाण वि खुद्दगाणं । वाणिक्कमाण सवराण जणाण खेत्ता आदिवासि - बहुलाण धणीहि माणं ॥16 ॥ उनमें विविध जातियाँ, उपजातियाँ थीं, विप्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र एवं वाणिकों के क्षेत्र भी थे। उनमें शवरजनों आदिवासियों की बहुलता के क्षेत्रों का धन से मान था । 17 अम्हाण धम्म- अणुमाणग- माणवाणं चोरासि - जादि-उवजादि जणेसु एगा। जादि त्थ जादि पउमावदि वेस्स जादी भासेज्जएंति पुरवाल - महाजणाणं ॥17॥ हमारे धर्म प्रधान मानवों की चौरासी जाति - उपजातियों में एक जाति पद्मावती पुरवाल वैश्व जाति पुरवाल महाजनों की थी । 18 ते धम्मगा वि ववसाय - सुणिट्ठगावि राजेंति राज जुद-सेट्ठि वरिट्ठ- लोगा । सव्वे हु खेत्त - कुसला अणुसासिगा ते लेहाहियारि-अहिजंति - विणाण - वेत्ता ॥ 18॥ वे सभी अपने क्षेत्र में कुशल, अनुशासक, लेखाधिकारी, अभियंत्री, विज्ञान सम्मदि सम्भवो :: 47
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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