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________________ संघ आहू, धार को प्राप्त हुआ। शुभचंद्र और मानतुंग धार धरा पर साधना में रत रहे। यह भोज की नगरी है। इसके प्रांगण, किला एवं उच्च लाट को भी देखते फिर यहीं पर (17 से 22 अप्रैल तक) महावीर जयन्ती का आयोजन करते हुए संघ नालछा पहुँचा। यहाँ पर नेमिप्रभु के दर्शन करते हैं। 47 मंडुणिरिक्ख-महलं लुहणिं गुहंच लक्खं णवं च जिणभत्त-सदं च सत्तं। देवालयाण मुणि-खेत्त-खणण्ण-भागं पुव्वे समुद्द-इध टापु समो हु अत्थि॥47॥ मांडु (मांडव) के महल, लुहानी की गुफा को संघ देखता है। यहाँ नौ लाख मुनि एवं जिनभक्तों के सात सौ जिनालयों की प्रमुखता का स्थान रहा है। यहाँ खनन में कई प्राचीन जैन मूर्तियां निकली। यह मांडू पूर्व में समुद्र था और इस समय मांडू अर्थात् टापू के समान है। 48 वेसाह-किण्ह चउथी इग-मज्झ रत्ती बाबंडरेण धरसायियमंडवो वि। जग्गेज्जजुत्त-परिसंघ-पभाद-काले सामाइगे कुणदि पच्छ चरेदि तारं॥8॥ वैशाख कृष्ण चौथ की रात्रि खुले मंडप में बवंडर (पवनवेग) से सब कुछ धरासायी हो गया। संघ जागता रहा, फिर प्रभात काल में सामायिक खुले में करता इसके अनंतर तारापुर पहुँचता है। महरटुं पडिगमणं 49 उण्हत्त-काल धरमादु चरेदि संघो . सामत्त-सील-महरट्र-पडिंच सूरी। मग्गे अभाव-गद-ठाण-विहार-जुत्तो सुण्णे अगार-रहिदे वि तपंत-संता149॥ उष्णता के समय धरमपुरी से विहार कर देता है संघ। यह संघ एवं सूरी समत्वशील महाराष्ट्र की ओर गतिशील रहते हैं। मार्ग में अभावगत स्थान, ठहरने के स्थान न होने पर भी शून्य, अगार रहित स्थानों में ठहर जाते और अपनी तपादि 230 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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