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________________ घर पर। मैं मूसल नहीं चाहता अर्थात् मैंने मूसल नहीं मांगा। सेठानी ही ऐसी है यही विचार करते हुए सेठ आश्वस्त हुए और समागत से क्षमा मांगी। 43 एत्थं खमेर - यरे वि पहावणा वि एलक्क दिक्ख - विहि-वागरणं च पाढो जसो मुणि-सुणील-विसेस-रूवे दिखा सुरम्म - जम सल्लिहणा वि जादो ॥43 ॥ यहाँ खमेरा में धर्मप्रभावना हुई (आशीष ) ऐलक बने। उन्होंने मुनि सुनीलसागर से कातंत्रव्याकरण का विशेष रूप से ज्ञान किया । यहाँ सुरम्यसागर बने, उन्होंने यम खल्लेखना ली, उनकी समाधि हुई । 44 कल्लाण- पंच- समए हु दिसंबरे वि चालीस-पिच्छि- अणुसासिद- साहणाए । रत्तासदा मुणिवरा लहु गाम-अस्सिं तत्तो चरेदि कुलथाण इमो हु संघो ॥44 ॥ दिसंबर में पंच कल्याणक के समय 40 पिच्छियां अनुशासित साधना में रत थी। इसके पश्चात् कुलथाणा में 2005 के प्रथम दिवस पर संघ प्रवेश हुआ। यहाँ राजस्थान के गृहमन्त्री गुलाबचंद कटारिया का आगमन हुआ । 45 अत्थेव खुल्लिग - दुवे अणुदिक्खपक्खे सम्मत्त - संदिसमदी अणुभूसदे हु । विसे दिवे अणुगदे सुपहं समाहिं किच्चा तदा हु रतलाम-पवास-उ - जुत्तो ॥45 ॥ यहाँ दो क्षुल्लिका दीक्षाएँ हुईं। ये सम्यक्त्वमती एवं संदेशमती नाम युक्त हुईं। बीस दिन (20 दिन) प्रवास के पश्चात् नादवेल में सुपथसागर की समाधि करके संघ रतलाम प्रवास को प्राप्त होता है । 46 आहुँच धार णयरं सुहमाण तुंगं भोजस्स पंगण - किलं परमं च लाडं । दंसेज्ज पच्छ महवीर - जयंति - मण्णे । णालच्छ-मि-पहु दंसण - कुव्वएज्जा ॥46 ॥ सम्मदि सम्भवो :: 229
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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