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________________ 29 पज्जूसणे मुणिसुकोसल-णाम- दिक्खे साहू हवे वि सुउमाल - सुसेट्ठ णिट्ठो । णिव्वाण - वीर - दिवसं परिवट्ट - पिच्छी आदिस्स दिक्ख-सरदिं अवि सज्झ सम्मं ॥29॥ पर्यूषण पर्व (2002) में दीक्षा से मुनि सुकौशल एवं सुकुमाल सागर शुद्ध निष्ट साधु हुए। वीर निर्वाण दिवस, पिच्छी परिवर्तन, स्वाध्याय एवं आचार्य आदिसागर का दीक्षा दिवस एवं स्मृति दिवस भी मनाया गया। उदयपुर-विहार- चाउम्मासो (2003) 30 सो पारसोल - पुर-मुंगण - खुंत-वादं साहस्स- ते जणवरी - गद- आयडं च । अत्थेव संति- खडगासण- मुत्ति-वासं हूमड्डु - गेह- समए हु महिंद - सत्थी ॥30॥ संघ पारसोला, मुंगाणा, खुंता, धरियाबाद 2003 जनवरी 2 को आया । यहाँ से उदयपुर के आयड़ क्षेत्र को प्राप्त हुआ । यहाँ पर आचार्य शान्तिसागर जी ने चातुर्मास किये, यहाँ पर खड़गासन मूर्ति भी है। उदयपुर में हूमड़ भवन के प्रवेश के समय महाराणा महेन्द्रसिंह एवं महंत मुरली मनोहर शास्त्री जैसे विशेष व्यक्ति भी थे । 31 माघे हु सम्मदि गणिस्स हु जम्म-जिंतिं सिद्धंत - चंद गणि- बाल जुगिंद साहू । गोट्ठी हवे फरवरी सहभग्गि पण्णा पेम्मो हु भाग- उदयोसणसीदलादी ॥31॥ माघ महिने में (फरवरी 6 - 8 ) आचार्य सन्मतिसागर की 65 वीं जन्म जयन्ती मनाई गयी। उस समय आचार्य सिद्धान्तसागर, आचार्य चन्द्रसागर, बालाचार्य योगीन्द्रसागर आदि अनेक साधु थे । यहाँ 26-28 फरवरी की गोष्ठी में प्रेमसुमन, भागचंद, उदयचन्द्र, सनतकुमार एवं शीतलचंद्र आदि प्रज्ञजन आए । सम्मदि सम्भवो :: 225
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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