SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22 तत्तो हुणीसरिय पासगिरिं च पत्तं दंसेज्ज सत्त-जिणमंदिर-बालपंचं। सत्तं रिसिं णवगहं गुरुमंदिरादिं संसेज्ज सूरद जयं बहु सावगेहिं॥22॥ फिर संघ वहाँ से निकलकर पार्श्वगिर पहुँचा। पंचबालयति, नवग्रह, सप्तऋषि, गुरुमंदिर आदि देखते हैं। सातों ही रम्य थे। तभी तो सूरत, जयपुर इन्दौर, सेलम, उज्जैन, भोपाल, कलकत्ता, दिल्ली, बम्बई आदि के श्रावकों के द्वारा भी प्रशंसा की जाती है। 23 अच्चन्त-उण्ह-मइ-मास-विसेस-जादो बामंदि-पाइठ-जिणालय-पच्छ कसरं। वेदी-पइट्ठ-किदमाण-इमो वि भीकं जूणं च सेल-सिहरं कलसं पइटुं॥23॥ अत्यंत उष्ण (15-17 मई) मई मास था। उस समय बामंदी में जिनालय प्रतिष्ठा की गयी इसके पश्चात कसराबाद में वेदी प्रतिष्ठा करता हुआ संघ भीकनगाँव पहुँचा। वहाँ 18 से 20 जून तक सम्मेदशिखर वेदी प्रतिष्ठा शान्तिप्रभु की स्थापना एवं कलशारोहण हुआ। णरवाली चाउम्मासो (2002) 24 पोम्मावदिं परम-पावण-धाम-पच्छा पावागढ़म्हि जिणदसण-किज्ज-संघो। मज्झंच गुज्जर-पदेस सुगाम-गामं मेवाड-खेत्त-णर-वालि-पडि चरेज्जा ॥24॥ पद्मावती के परम पावन धाम के पश्चात् पावागढ़ में जिनदर्शन कर संघ मध्य प्रदेश, गुजरात आदि के प्रदेशों के अनेक गांवों को पार करते हुए मेवाड़ क्षेत्र के नरवालि की ओर संघ गतिशील रहा। 25 कालिंजरे जिणपहुँ अवि बाहुबल्लिं णम्मंत संघ-बडुदायिय-वंसवाडं। सम्मदि सम्भवो :: 223
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy