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________________ 41 बहोरिए दलपदे हु समीव-वट्टी मण्णुण्ण-खेत्त-जल-मंदिर-सोहमाणो। पच्चास-गेह-जिण-सेल-बहुत्त-भागे विस्साम-रम्म-वणए मुणिसंघ-राजे॥1॥ वम्हौरी एवं दलपतपुर के समीपवर्ती क्षेत्र मनोज्ञ है, यह जल मंदिर से सुशोभित 50 जिन मंदिरों का क्षेत्र लघु पर्वत श्रृंखला भाग में स्थित है। यहाँ विश्रामालय भी रम्य वन क्षेत्र में विद्यमान है। यहाँ पर ही आचार्यसन्मतिसागर संघ सहित शोभायमान होते हैं। 42 आहार-पच्छ-मुणिराज-अरण्ण-मज्झे सिद्धे सिले पवर ठाण-गदो हिणंदे। सामाइगे हु अवचिट्ठदि रम्म भागे णिव्वाण पत्त वरदत्त मुणिंद वंदे ॥2॥ आहार के पश्चात् मुनिराज सुनीलसागर अरण्य के मध्य स्थित सिद्ध शिला पर ध्यान हेतु प्रस्थान कर गये। वे उसे देखकर अति आनंदित हुए। वे सामायिक में स्थित हुए इससे पूर्व ही वरदत्तादि मुनीन्द्र की वंदना करते हैं। कुंदकुंदेण विरचिदं गाहं सरेदि सोपासस्स समवसरणे, गुरुदत्त-वरदत्त पंचरिसिपमुहा। रेसंदिगिरि सिहरे, णिव्वाण गया णमो तेसिं॥43॥ वे आचार्य कुन्दकुन्द विरचित गाथा का स्मरण करते हैं-पार्श्वप्रभु के समवशरण में गुरुदत्त-वरदत्त आदि पाँच प्रमुख ऋषि रेशंदीगिरि के शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए, उन्हें नमस्कार हो। कुंडलपुरे पवेसो 44 णेणागिरिं च अणुवास दुवं च पच्छा मज्झेगुवा खडयरी-बटिया-फुटेरे। सीदा बणे कुडइ-गाम पटेर-गामे दम्मोह-मोहग-सु-कुंडल-ठाण-पत्तो॥44॥ सम्मदि सम्भवो :: 207
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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