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________________ वीर सं 2599 वीं महावीर जयन्ती 16 अप्रैल को कानपुर में मनाई गयी। इसके अनंतर क्षुल्लिका दीक्षा (23 अप्रैल) को हुई। वे क्षुल्लिका संभवमती आगामी भव, कषाय वन एवं क्षुद्र भाव को छेदनार्थ इस मार्ग की ओर चल पड़ी। 49 आयार-सुद्धि-विणु अम्ह हिदो कदं च अज्झप्पझाण विणु अम्ह विगास णत्थि। अम्हे वहति सयला पर-पच्छि-धारे दाणं हवेदि विणु धम्मय-सम्म णाणं॥9॥ आचार-शुद्धि बिना हमारा कल्याण कैसे? अध्यात्म ध्यान (आत्मचिंतन) बिना हमारा विकास नहीं हो सकता? हम पश्चिमी धारा में बहते जा रहे हैं। हम दान देते, पर धर्म के बिना सम्यग्ज्ञान कैसे हो सकता है। Welth is Lost Nothing is Lost-तण खए णो किंचि खयोHelth is Lost Something is Lost-तण खए किंचि खयो त्थि But Character is lost everything is lost चरित्र खए त्थि सव्वखयो त्थि। 50 अत्थे विराग-मुणिराय-मुणीस-दंसे पत्तेज्ज खुल्लय सु-दिक्ख-इमो हु सम्मो। पच्छा हु काणपुर-वास-पवास-जुत्तो दंसेज्ज सो रहण-माणिग-बिंब-अत्थं ॥5॥ लखनऊ में विरागसागर मुनिश्री आचार्य सम्मतिसागर के दर्शन करते हैं। इन्हीं आचार्य जी से क्षुल्लक पद पर विभूषित हुए। आचार्य विमलसागर जी आज्ञा से सम्यक् दीक्षा युक्त थे। संघ कानपुर आया, यहाँ पर प्रवास युक्त रत्न प्रतिमाओं के दर्शन करता है। 51 अट्ठासि-दिण्ण-महदी हु पभावणाए जाएज्ज मग्ग-समए वलिवद्द- अग्गे। सद्दे-जए दहदहंत-दलंक-झुंडे सदा जयादु विरमेज पलायदे सो॥51॥ कानपुर में अट्ठासी (88) दिन प्रवास प्रभावना के साथ व्यतीत हुआ। जब विहार में लोग जयकारे लगा रहे थे तब एक बलिवर्द सांड़ झुंड के बीच आ गया। तब आचार्य श्री जयकार के लिए रोकते है, तो वह भी रुक गया। सम्मदि सम्भवो :: 191
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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