SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45 पासं च णंदि जिणगेह पहुँच चंदं साहस्स-कूड तिरहे पह-पंथि-ठाणं। चिट्ठज्ज पच्छ तिस-चोविस-मंदिर च तेमुत्तिमंदिर-विणिम्मिद-ठाण-आदिं॥45॥ संघ तेरापंथी कोठी पहुँचा जहाँ पार्श्व प्रभु, नंदीश्वर मंदिर, चंद्रप्रभु, सहस्रकूट जिनालय आदि देखते हैं व वहीं विश्राम करते, फिर भरतसागर जी की सन्निधि में निर्मित होने वाले त्रिमूर्तिमंदिर आदि स्थान को प्राप्त हुए। 46 अट्ठाणवे णव-मईमुणिराय-संघो उच्चाव-णिच्च-धरणीइ धरत-पादे। पंचेव-किल्ल पध-चिट्ठिइ-गंध-णालं। झाणग्ग-भूद-कल-कल्ल-पवाह-पत्तं ॥46॥ 9 मई 1998 को मुनिराज संघ ऊँची-नीची धरणी पर पग रखते हुए पांच किलोमीटर पर प्रवाहित गन्धर्व नाले को प्राप्त हुआ, जो मानो ध्यानाग्र होते हुए अपनी कल-कल ध्वनि से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता था। 47 सीदाइ सेदु-पण-कूड-गणं धर-च पासस्स कूड-महमंत-सरंत-पारं। कुव्वेदि तत्थ भममाण-पसूण दंसे सामुद्द-तल्ल-पणदल्ल-सुवण्ण-कूडं।47॥ संघ सीता नाले पर सेतु के पथ से गणधर कूट, महामन्त्र जपते हुए पार्श्वप्रभु की कूट को पार करता, वहाँ पालतू पशुओं को भ्रमण करते देखता है, फिर समुद्रतल से 4500 मीटर उच्च सुवर्ण कूट को प्राप्त होता हैं। 48 सीढीइ-मग्ग-अणुगामि-इमो वि संघो एगे गुहाइ पुर-सिद्ध पगे णमेज्जा। सामा हु वण्णि-पहुपास-पगे पहादं भत्तामरं च महवीर-सयंभु-थोदं॥48॥ यह संघ कुछ सीढ़ियों के मार्ग का अनुगामी गुफा में स्थित पुरा सिद्धों के चरणों में नमन करता है। वहाँ ही श्याम वर्णी पार्श्वप्रभु के चरणों में सुप्रभात स्तोत्र 168 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy