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________________ पर पार्श्वसागर, विरागसागर, अजितसागर, कुमुदनन्दी, सन्मतिसागर एवं सिद्धान्तसागर आदि का विशाल संघ भी था, तब आचार्य आदिसागर जी का 55 वां समाधि दिवस मनाया गया। 10 फग्गुण - कण्ह दसमिं अडविंस - वासं सव्वण्डु-सागर-समाहि- सुसंपणेज्जा । साहूण सण्णहि-विसेस - अडे हु चत्ते पच्छा इमो हु बरुआ - णयरं च पत्ते ॥10॥ फाल्गुन कृष्णा दशमी के दिन अठाईस उपवास पूर्वक सर्वज्ञसागर की समाधि संपन्न हुई। इस समय 48 साधुओं की विशेष सन्निधि थी । इसके पश्चात् संघ बरुआ सागर आया । सुणीलसायर - दिक्खा 11 सत्ताणवे विस अपेल तयोदसीए वीरे जयंति - मणुहारि - सुणील- दिक्खा । सो पाइए लिहदि सक्किद दंस सुत्तं सूरी चदुत्थ - अणुसासिद संघ - संगी॥ 11 ॥ बरुआसागर में 1997 बीस अप्रैल त्रयोदशी के वीर जयन्ती पर मनोहारी दीक्षा सुनीलसागर की हुई । वे प्राकृत, संस्कृत, दर्शन एवं सूत्र ग्रन्थों के ज्ञाता प्राकृत में लिखते एवं बोलते हैं। वे इस समय (2017) में अनुशासित संघ के नायक चतुर्थ ट्टाचार्य 12 आदीस-सम्मदि-सु-आण-तवाण मुत्तं दूणसम्म - सुद- पाढग - वाचगो वि दोसाण छिण्ण - बहु साहग-जोग-गिट्ठो देसेज्जदे जण - जाण भवादु मुत्तं ॥ 12 ॥ जो आचार्य आदिसागर एवं तपस्वी सम्राट सन्मतिसागर की आज्ञा तथा तपों को मूर्त रूप लेकर सम्यक् श्रुत पाठक - वाचक हैं जो दोषों की समाप्ति हेतु पूर्ण योग-साधना निष्ट जन जनों के लिए भव से (संसार से) मुक्ति का मार्ग दर्शाते हैं। 158 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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