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________________ 49 पंथग्गहाण मणुजाण विसेय रूवे अप्पेहि सम्मसहअत्थित्त साहणाए । तेराइ - बीस - अणुगामिणि मज्झ - सव्वे । भादुत्त-भावण- गुणेदि पपूरएज्जा ॥49 ॥ पंथाग्रह युक्त मनुष्यों के लिए विशेष रूप में प्रभावित किया। उन्होंने अपने समत्व, सहअस्तित्व एवं साधना से तेरा बीस अनुगामी जनों के, सभी के मध्य में मातृत्व भावना गुणों से पूरित किया । वावर-आगमणं 50 सो सम्म तावस- -गुणी मुणि संघ णिच्चं गामी - भवो अणुपुरे अणुगाम- अण्णे । सो बावरे गुरुवसी महकित्ति सिक्खं थाणं च एलग-सरस्सइगंथ - संथं ॥50॥ यह संघ ग्राम, नगर आदि में गमन करता हुआ व्यावर में आया । यह गुरुवर महावीरकीर्ति की शिक्षास्थली थी । यहाँ यह सम्यक् तपस्वी गुणी मुनि संघ ऐलक पन्नालाल सरस्वती ग्रंथालय के स्थान को भी प्राप्त हुआ । 51 आयार- णिट्ट-मुणिराय - इधेव सत्थं पंडूलिवं च बहुमुल्ल - पुरं च गंथे । उच्चासनं विणु हुणिम्मथले सुचिट्ठे दंसेज्जदे हु अदिणंदगुणं च पत्ते ॥51॥ आचारनिष्ठ यह मुनिराज का संघ व्यावर के शास्त्र भंडार की पाण्डुलिपि एवं बहुमूल्य पुरा ग्रंथों को नीचे बैठे ही देखते उच्चासन के बिना ही। वे उन अमूल्य संपदा से अति प्रभावित हुए । 52 देव व्व सत्थ-महणिज्ज - सुपुज्ज-लोए जेहिं णाण- अणुचिन्तण-भाव-मूले । गच्छेति तित्थयर-सम्म-पर्याड्डि सुत्तं संघस्स अज्जि - विजया भगिणी वि अत्थि ॥52॥ देव की तरह शास्त्र भी इस जगत में पूज्य होते हैं। जिनसे ज्ञान अनुचिन्तन के 146 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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