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________________ 20 अत्थेव जादि चरणस्स समाहि-सम्मो संतीइ संत-गुणसायर-सम्म-संती। बामोत्तरे विहि-विहाण-सुवेदिगाए कल्लाणगे हु कुसले गणिपुष्पदंतो॥20॥ चरणसागर एवं गुणसागर की समाधि प्रतापगढ़ में शान्तिपूर्वक संतों के सान्निध्य में हुई। बामोत्तर शांतिनाथ में विधि विधान सहित वेदी प्रतिष्ठा हुई। फिर कुशलगढ़ का पंच कल्याणक हुआ। जहाँ आचार्य पुष्पदंतसागर भी आए थे। 21 सम्माड-केसरिय-खेत्त-पखेत्त-पुच्छा सो मंदसोर-णयरे वि गजिंद-लेहं। णाणम्मदिं च समहिं कुणएज्ज संघो। पत्तेदि सो उदय वास-चदुं च हेदु॥21॥ यह संघ मंदसौर नगर के बाद केसरिया आदि क्षेत्रों में विचरण करता जब उदयपुर आया। मंदसौर में गजेन्द्रसागर एवं आर्यिका ज्ञानमति की समाधि होती है। फिर संघ उदयपुर में चातुर्मास हेतु पधारता है। 22 सत्तासि-वास चदुमास सहास पुण्णो पट्टत्थली गुरुवरस्स य पुण्णसाली अण्णे मुणीवर गुणी गहएज्ज णाणं कीरेज्ज घोर तव सम्मदि सूरि सेट्ठो॥22॥ सन 1987 को उदयपुर चतुर्मास महत्व पूर्ण हुआ। यह पुण्यभागी नगरी गुरुवर की पट्ट पदोत्सव धर्मस्थली भी है। यहाँ सूरिश्रेष्ठ सन्मति घोर तप करते हैं। अन्य मुनिवर विशेष ज्ञानाभ्यास करते हैं। 23 टाकाइट्रॅक णयरस्स हु सावगस्स दिक्खा हवेदि इगबंह मुणिस्स सम्मा। सव्वण्हु-सिद्धमुणि जादु-सुणाण-सुत्तं संघो पगच्छदि हु भिंडर-गाम गामे ॥23॥ उदयपुर में टाकाटूंका (गुजरात) के एक श्रावक एवं एक ब्रह्मचारी की दीक्षा होती है। वे सर्वज्ञसागर एवं सिद्धान्तसागर मुनि सूत्र ज्ञान की ओर प्रवृत होते हैं। 138 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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