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________________ गुरुवरस्स समाही 28 संघेण किज्ज अहमदाइ पभावणं च सीदे पकंप-गदकंप विहार जुत्तो । सिंहस्स वित्ति मुणिराय - कलोल गा सम्मेदलक्खिय-गणी अणुरोग - जुत्तो ॥28॥ संघ के द्वारा अहमदाबाद में महती प्रभावना की गयी । शीत में कड़कड़ाती सर्दी और अस्वस्थ आचार्य सिंहवृत्ति पूर्वक सम्मेद शिखर के लक्ष्य वाले मुनिराज कलोल ग्राम में आ गये । 29 छक्के जणेवर दुसत्तर दिण्ण कित्ती सम्मत्तिए हु महसाणपुरे हु सम्मं । सक्कार साम मुणिभत्त अणूवलालं किज्जा गुरुस्स गुरुवार महोच्छवं च ॥29॥ जनवरी, सन् 1972 के दिन महावीरकीर्ति की मेहसाना में समाधि हो गयी । वहाँ पं. श्यामसुंदर अनूप लाल एवं धर्मेन्द्र ने गुरु का गुरुवार को अंतिम संस्कार व मृत्यु महोत्सव किया। 30 कित्तीइ मिच्चु णिगडं मुणिदूण पुव्वं सूरिं च सम्मदि पदं दइदूण सम्मं । सम्मं समाहि मरणं किद - कित्ति एसो अट्ठारहा हु बहुभासि इमो हु संतो ॥30॥ आ. महावीरकीर्ति ने मृत्यु को जानकर पहले ही सन्मतिसागर को उचित सूरी पद को देकर सम्यक् समाधिमरण किया । यहीं महावीरकीर्ति अठारह भाषाओं के भाषी संत थे। समाधि से पूर्व महावीरकीर्ति ने संघ के पंचाधारों की स्थापना करते हुए सन्मतिसागरजी को आचार्य व उपाध्याय, कुंथुसागरजी के गणधर, संभवसागरजी को स्थाविर, मिसागरजी को प्रवर्तक तथा आर्यिका विजयमति को गणिनी बनाया था। 108 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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