SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य महावीरकीर्ति असाध्य रोग युक्त जैसे हुए वैसे भिषक धर्मेंद्र के पुत्र डॉ. महावीर उनकी सेवा में उपस्थित हुए। पथ्य उपचार से वे रोग मुक्त हुए, पर शरीर की कमजोरी थी, जिससे उन्हें निरोग हेतु उस स्थान का परित्याग करना पड़ा। सूरी इमो परमपावण-भावणाए पायच्छिदं पडिकमण्ण-विहिं लहेज्जा। सो सम्मदी विहरएज्ज महाहुरडे सोलापुरं फलटणं अकलूज-बस्सिं॥7॥ ये सूरि परम पावन-भावना के साथ प्रायश्चित, प्रतिक्रमण विधि पूर्ण करते। गुरु के साथ सन्मतिसागर सोलापुर, फलटण, अकलूज एवं बार्शी आदि की ओर महाराष्ट्र में प्रवेश कर जाते हैं। कुंथलगिरि-चाउम्मासो 8 पत्तेज्ज कुंथलगिरि कुल-देस-ठाणं अत्थेव अंकलियरस्स पवज्ज-खेत्तो। भू-संतिसायर-मुणीस-समाहि-थल्लो अद्रुव छक्क चदुमास-पवित्त-अत्थ॥ कुलभूषण-देशभूषण के स्थान, अंकलीकर (आ. आदिसागर) का दीक्षा क्षेत्र, आचार्य शान्तिसागर की समाधि स्थल की भूमि वाले कुंथलगिरि को प्राप्त संघ (सन्मति सागर) यहाँ 1968 के चातुर्मास को पवित्र बनाते हैं। सामो धणिंद सिरितेज-सुमेरचंदो अज्झप्प-णाण-सुदणाण-पदिण्णमाणा। एदे हु पण्णजण-तच्च-पहाण-णाणं कुव्वाविएंति सुद-भावण-जग्गवंता॥9॥ यहाँ श्यामसुंदर, धनेन्द्र एवं सुमेरचंद्र (दिवाकर) प्रज्ञजन तत्व ज्ञान कराते है। ये अध्यात्मज्ञान, श्रुतज्ञान (चारों अनुयोगज्ञान) देने एवं श्रुत भावना जागृत करने वाले थे। 102 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy