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________________ १३२ भागमधरसरि . (७) कई बार छोटे विद्यार्थियों में जो सुझबूझ और समझने की शक्ति होती है वह जीवन के छोर पर पहुँचे हुए सत्तर साल के बूढे में भी नहीं होती। . परन्तु श्रीमान् सयाजीराव ऐसी बात सुनने-समझने को तैयार नहीं थे। एक बार वेश्याओं की सभा हुई। उस में इस विषय पर विचार विमर्श होनेवाला था कि “सतियों का सम्मान की दृष्टि से और हमें अपमान की दृष्टि से देखा जाता है, इस के लिए हमें क्या करना चाहिए।" विचार-विनिमय के अन्त में वेश्याओं का अपमानपूर्ण दृष्टि का शिकार न होना पड़े, और उनका सम्मान सुरक्षित रहे इस हेतु निम्नलिखित मनोरंजक प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित किया गया--- "संसार की सभी सती स्त्रियों से हमारा आग्रहपूर्ण अनुरोध है कि आज से आप भी सतीत्त को न बचाएँ और हमारी तरह से सर्वत्र स्वतन्त्रता पूर्वक घूमे-फिरें और आनन्द लूटें। आप के ऐसा करने से जगत की जनता हमारे प्रति घृणा करना बन्द करेगी और नारी-जगत पर आप का बडा उपकार माना जाएगा। साथ ही यह भी माना जाएगा कि हमारे नारी-समाज में समानता स्थापित हुई है।" गायकवाड़ो सरकार ने अपनी विधानसभा में जो विधेयक पारित कराया वह उपर्युक्त प्रस्ताव के ढंग का है। विक्रम संवत् २००४ में श्रीमान् गायकवाड़ सरकार का राज्य गया, उनके सब हक गये, साथ ही जालिम कानून भी गया, परन्तु जालिम कानून का काला दाग आज भी कायम रह गया है।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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