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________________ संस्थाकी जगह में परम पूज्य आगमेाद्धारक गुरुदेवश्री के पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया । तथा उसी जगह पर रु. ८८,००० की लागत से वने भव्य गुरुमंदिर में परम पुज्यश्री की ध्यानस्थ दशा में प्रतिमा बिराजमान की गई है। जिनकी आज्ञा में आज ४०० से अधिक साधु-साध्वी ज्ञान-ध्यान तपस्या आदिकी आराधना कर रहे हैं ऐसे अनन्य पट्टधर गच्छाधिपति आचार्य भगवान श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी म० ने १०,००० दस हजार मानव समुदाय के बीच गुरुदेवश्री की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की । पूज्य आगमोद्धारकभी का प्रेरणादायी जीवनचरित्र पाठके का मार्गदर्शक बने यही अभ्यर्थना । विक्रम संवत २०२९ श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्र आनममंदिर प्रतिष्ठा दिन माघ सुदी ३ मंगलबार, सुरत, आ० श्री आनंदसागरसूरीश्वरशिष्य गुणसागर प्रकाशक की ओर से यह हिन्दी अनुवाद कैसे प्रकाशित हुआ ? अवश्य कठिन प्रन्थ का प्रकाशन, लेखन और अनुवाद करना कार्य है । प्रकाशन और लेखन में एक भाषा का ज्ञान अपेक्षित होता है, परन्तु अनुवाद के लिए दो भाषाओं पर पर्याप्त अधिकार की आवश्यकता होती है। जैसे यदि मूल प्रन्थ गुजराती में हो और उसका हिन्दी में अनुवाद करना हो तो गुजराती एवं हिन्दी - दोनों भाषाओं व्याकरण का ज्ञान, और लाक्षणिक प्रयोगों एवं अन्य विशेषताओं
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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