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________________ ८४३ पंचम खण्ड : परिशिष्ट चतुर्विध संघ की सेवा में यहाँ के श्रावक समुदाय का अग्रगण्य योगदान रहा है। ___इसी ग्राम में 'श्री जैन रत्न विद्यालय' रूपी कल्पवृक्ष की स्थापना १५ जनवरी १९२९ को हुई जहाँ से | अद्यावधि सहस्रों छात्रों ने शिक्षा व संस्कार प्राप्त कर भारत के कोने-कोने में अपना, अपने गुरुजनों व इस विद्यालय | का नाम उज्ज्वल किया है। विद्यालय का स्नातक होना ही अपने आप में प्रमाण-पत्र बन गया, ऐसी प्रभावी यहाँ की शिक्षा व दृढ़ संस्कार रहे हैं। विद्यालय श्री जैन रत्न पौषधशाला भवन में संचालित है, जिसके लिये ३४००० वर्ग गज से भी अधिक | | जमीन भोपालगढ़ के शिक्षाप्रेमी महामहिम महाराजाधिराज श्री कानसिंह जी साहिब द्वारा प्रदान की गई। भवन निर्माण में उदारमना सुश्रावक श्री भीकमचन्दजी विजयराजजी सा कांकरिया, शिक्षाप्रेमी क्रान्तिकारी विचारों के धनी श्री राजमलजी लखीचंदजी ललवानी (जामनेर) का प्रमुख योगदान रहा। विद्यालय के विकास में सर्वश्री सूरजराजजी बोथरा, श्री किशनचन्दजी मुथा, श्री जालमचन्दजी बाफना, श्री गजराजजी ओस्तवाल, श्री मोतीलालजी मुथा (सतारा), श्री लालचंदजी मुथा (गुलेजगढ़), श्री जबरचंदजी छाजेड़, श्री आनन्दराजजी सुराणा (जोधपुर), श्री इन्द्रमलजी गेलडा (मद्रास), श्री इन्द्रचन्दजी ललवाणी (नाचणखेड़ा), श्री विजयमलजी कुम्भट (जोधपुर), श्री रतनलालजी नाहर (बरेली), श्री रतनलाल जी बोथरा , श्री पारसमलजी बाफना , श्री सायरचन्दजी कांकरिया, श्री सुगनचन्दजी कांकरिया, श्री सुगनचन्दजी ओस्तवाल, श्री रिखबराजजी कर्णावट, श्री अनराजजी बोथरा, श्री मूलचन्दजी बाफना, श्री अनराजजी कांकरिया, श्री किस्तूरचन्दजी बाफना आदि सुज्ञ श्रावकगण की महनीय भूमिका रही है। वर्तमान में विद्यालय का कुशल संचालन अध्यक्ष के रूप में श्रीमान् सूरजराजजी ओस्तवाल संभाल रहे हैं। पण्डित श्री भीकमचन्दजी विद्यालय के प्रथम प्रधानाध्यापक थे। तदनन्तर श्री सूर्यभानुजी भास्कर, श्री रतनलाल जी संघवी, श्री फूलचन्दजी जैन सारंग, श्री चन्द्र ईश्वरदत्तजी शास्त्री, श्री केशरीकिशोरजी नलवाया, श्री विश्वप्रकाशजी बटुक, श्री देशनाथजी रेला, श्री चांदमलजी कर्णावट, श्री पारसमलजी प्रसून आदि की सेवाएं सराहनीय रहीं। वर्तमान में श्री राणीदानजी भाकर के प्रधानाध्यापकत्व में विद्यालय अग्रसर है। __ विद्यालय में शिक्षा के साथ संस्कार, साहित्य व धर्म का समुचित ज्ञान छात्रों को प्राप्त होता रहा है। यहाँ के छात्र शिक्षा के साथ सदा साहित्यिक एवं सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। व्यावहारिक शिक्षा के साथ साथ पाथर्डी बोर्ड से धार्मिक परीक्षाओं व हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से हिन्दी की परीक्षाओं के आयोजन की | विद्यालय में सदा व्यवस्था रही है। विद्यालय सम्प्रति माध्यमिक विद्यालय के रूप में गतिमान है। बाहर के छात्रों के आवास व भोजन की | व्यवस्था हेतु 'जैन रत्न छात्रावास' विद्यालय के एक अंग के रूप में संचालित है। विद्यालय का परीक्षा परिणाम लगभग शत प्रतिशत रहता है। यहाँ के कई स्नातकों ने उच्च शिक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर विद्यालय का मान बढ़ाया है। सांस्कृतिक गतिविधियों में पारंगत यहाँ के कई स्नातक संघ के कार्यकर्ताओं व स्वाध्यायी श्रावकों के रूप में समाज की महनीय सेवा कर रहे हैं। विद्यालय परिवार रत्नवंश परम्परा के श्रावकों द्वारा संचालित विभिन्न संस्थाओं से सदा अभिन्न रूप से जुड़ा रहा है। इसी प्रांगण में आचार्य भगवन्त श्री रत्नचंदजी म.सा. की शताब्दी मनाई गई। उस अवसर पर 'सम्यग् ज्ञान प्रचारक मण्डल' की स्थापना हुई। जैन जगत की अग्रगण्य पत्रिका 'जिनवाणी' का विद्यालय संस्थापक है व कई वर्षों तक इसका संचालन यहीं से होता रहा, ग्राम्य क्षेत्र में प्रकाशन संबंधी असुविधाओं के मद्देनजर इसे जोधपुर व फिर
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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