SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 911
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४१ IATTratam E- पंचम खण्ड : परिशिष्ट ......_... कनकमलजी चोरडिया, श्री पूनमचन्दजी बडेर, श्री चन्द्रराजजी सिंघवी, श्री टीकमचन्दजी हीरावत, स्व. श्री मोतीचन्दजी कर्णावट स्व. श्री सज्जननाथजी मोदी, श्री चैतन्यमलजी ढड्डा, श्री चेतनप्रकाशजी डूंगरवाल, श्री सुमेरसिंह जी बोथरा, श्री विमलचन्दजी डागा, श्री ईश्वरलाल जी ललवाणी , श्री पदमचन्दजी कोठारी, श्री प्रकाशचन्दजी कोठारी, श्री प्रकाशचन्द जी डागा आदि की सेवाएँ सदैव उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय हैं। . श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, पोड़ों का चोक, जोधपुर आचार्यप्रवर का यह दूरदर्शी चिन्तन था कि सन्त-सतियों के चातुर्मास से वंचित क्षेत्रों में पर्युषण के आठ || दिनों में धर्माराधन कराने वाले ऐसे स्वाध्यायी तैयार हों जो सूत्रवाचन, प्रतिक्रमण, प्रवचन या भजन-गायन आदि में निष्णात होने के साथ साधनाशील जीवन जीते हों । आचार्य श्री के इस चिन्तन का ही मूर्त रूप है श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर । संवत् २००२ में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के अन्तर्गत स्वाध्यायियों को पर्युषण में || धर्माराधन कराने हेतु ग्रामानुग्राम भेजने की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई, जिसमें सर्वप्रथम पाँच स्थानों पर स्वाध्यायियों को भेजा गया। संवत् २०१५ तक यह प्रवृत्ति शैशवावस्था में चलती रही। संवत् २०१६ में स्वाध्याय प्रवृत्ति को सुदृढ रूप से संचालित करने हेतु श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर की स्थापना की गई। स्वाध्याय संघ के अन्तर्गत पर्युषण-सेवा के साथ धार्मिक शिक्षण-शिविर, धार्मिक पाठशाला आदि के कार्यक्रम भी जुड़े। स्वाध्याय-संघ के उन्नयन में श्री सरदारचन्दजी भण्डारी, श्री पदमचन्दजी मुणोत, श्री प्रसन्नचन्दजी बाफना, श्री | सम्पतराजजी डोसी का संयोजक के रूप में तथा श्री चंचलमलजी चोरडिया एवं श्री अरुणजी मेहता का सचिव के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में रिखबचन्दजी मेहता इसके सचिव एवं श्रीमती सुशीलाजी बोहरा संयोजक हैं। स्वाध्याय-संघ की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं - (१) पर्यष्ण सेवा - देश एवं विदेश के उन क्षेत्रों में जहां सन्त एवं महासती वृन्द का चातुर्मास न हो, पर्युषण काल में वहां पर धर्माराधन हेतु स्वाध्यायियों को भेजना स्वाध्याय-संघ की प्रमुख प्रवृत्ति है। वर्तमान में इस संघ में ८३० स्वाध्यायी हैं जिनमें से लगभग ४०० स्वाध्यायी प्रतिवर्ष पर्युषणसेवा प्रदान कर रहे हैं। अनेक स्वाध्यायी ऐसे भी हैं जो व्यावहारिक जगत में न्यायाधिपति, सी.ए., इंजीनियर, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी, एडवोकेट, उद्योगपति, व्यापारी, व्याख्याता, अध्यापक आदि प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं। देश के विभिन्न प्रान्तों के साथ विदेश में भी स्वाध्यायी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। (२) स्वाध्याय-प्रशिक्षण शिविर - स्वाध्यायी तैयार करने एवं उनमें ज्ञानवृद्धि करने हेतु स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविरों का समय-समय पर आयोजन किया जाता है। (३) स्थानीय शिविर - प्रत्येक ग्राम एवं नगर में स्वाध्याय तथा सामायिक का शंखनाद करने एवं आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करने हेतु स्थानीय स्तर पर धार्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता - - - (४) धार्मिक पाठशाला - बालक-बालिकाओं को नैतिक एवं धार्मिक दृष्टि से सुसंस्कारित करने के उद्देश्य से इस संस्था द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर धार्मिक पाठशालाओं का संचालन मुणोत फाउण्डेशन मुम्बई के आर्थिक
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy