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________________ ८२७ - (पंचम खण्ड : परिशिष्ट प्राप्त कर वि.सं. २०१८ पौष शुक्ला द्वादशी को अजमेर में प्रवर्तिनी महासती श्री सुंदरकँवर जी म.सा. की निश्रा में भागवती दीक्षा अंगीकार की। आपने वि.सं. २०३५ से २०४३ तक पावटा स्थानक, जोधपुर में स्थिरवास किया। अन्त में आपने वि.सं. ! २०४३ फाल्गुन शुक्ला चतुर्थी मंगलवार ३ मार्च १९८७ को प्रात: ६ बजकर ५ मिनट पर संथारापूर्वक समाधिमरण को प्राप्त किया। • महासती श्री वृद्धिकंवर जी म.सा. आपका जन्म डाँगरा ग्राम में हुआ। पिता श्री केसरीमल जी तथा माता श्रीमती सोनीबाई जी से आपको सत्संस्कार प्राप्त हुए। आपका विवाह श्री मदनलाल जी कर्णावट के साथ हुआ। आपके पति का आकस्मिक निधन हो जाने से आपको संसार से विरक्ति हो गयी। आप श्री त्रिलोकचन्दजी संचेती, मद्रास की बहिन थीं। आपने वि. सं. २०१९ मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को सैलाना में प्रवर्तिनी महासती श्री बदनकंवर जी म.सा. की निश्रा में भागवती दीक्षा ग्रहण की। १६ वर्ष का संयम पालन कर आपने वि.सं. २०३५ चैत्र कृष्णा पंचमी को घोड़ों का चौक, जोधपुर में | समाधिमरण को प्राप्त किया। • महासती श्री तेजकंवर जी म.सा. व्याख्यात्री महासती श्री तेजकंवरजी म.सा. का जन्म रत्नसंघ के प्रसिद्ध सुश्रावक श्री उमरावमल जी सेठ जयपुर की धर्मपत्नी श्रीमती सज्जनकंवर जी की कुक्षि से वि.सं. १९९६ ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया को हुआ। सेठ परिवार प्रारम्भ से ही धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत रहा है। आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. जहाँ भी विराजते, आपके पिताश्री प्रत्येक पूनम को वहाँ जाकर अवश्य ही दर्शन-वन्दन का लाभ लेते थे। इस कारण आपके पिताश्री पूनमिया श्रावक जी के नाम से प्रसिद्ध थे। आपकी माताश्री भी धर्मपरायण आदर्श श्राविका थीं। प्रारम्भ से ही आपके घर-परिवार में धार्मिक वातावरण होने से आपकी धर्म-भावना निरन्तर बढ़ने लगी। आपने शासनप्रभाविका परम विदुषी महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. की प्रेरणा से जयपुर शहर में वि.सं. २०२० माघ शुक्ला द्वितीया को आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपका नाम तेजकंवर से बदलकर महासती श्री निर्मलावती जी म.सा. रखा गया, किन्तु आप महासती श्री तेजकंवरजी म.सा. के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। आपने अपनी गुरुणी जी की आज्ञा में रहकर थोकड़ों एवं शास्त्रों का अच्छा अभ्यास किया । आज आप व्याख्यात्री महासती के रूप में रत्न संघ में प्रसिद्ध हैं। आपने अब तक भीलवाड़ा, भोपालगढ़, जयपुर, जोधपुर, कोसाना, बिलाड़ा, गुलाबपुरा, बालोतरा, अजीत, बीजापुर, यादगिरी, पाचोरा, पाली, अलवर, हरमाड़ा, रूपनगढ़, खोह, गंगापुर सिटी, पीपाड़ शहर, अहमदाबाद, मुम्बई, हैदराबाद, रायचूर, जलगांव, कजगाँव, तोंडापुर आदि स्थानों पर चातुर्मास किये हैं। आपकी वाणी में विशेष मिठास है, जिसके कारण श्रोतागण आपसे विशेष प्रभावित रहते हैं। -
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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