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________________ 1८२६ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं आपके माता-पिता ने आपका विवाह भोपालगढ निवासी श्री भंवरलाल जी कांकरिया के साथ सम्पन्न किया। किन्तु असमय में ही आपके पतिदेव का निधन हो जाने से आपको संसार से विरक्ति हो गयी। फलस्वरूप आपने महासती श्री हरकंवर जी म.सा. (बड़े) की निश्रा में पाली में विक्रम सं. २००९ मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली। आपने अपने नाम को सार्थक करते हुए शान्तिपूर्वक जीवन जीते हुये ज्ञान, ध्यान व तप-त्याग में अपने जीवन को आगे बढ़ाया। शान्तस्वभावी होने के साथ आप तपस्विनी महासती हैं। वृद्धावस्था में भी तप में विशेष पुरुषार्थ प्रकट करने के कारण आपको आचार्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. ने 'तपस्विनी' पद से अलङ्कृत किया है। आप पिछले अनेक वर्षों से पर्युषण के दिनों में अठाई तप करती रही हैं तथा मासखमण जैसे दीर्घकालीन तप भी अनेक बार किए हैं। वि.सं. २०५१ के पुष्कर चातुर्मास में आपने मासखमण की तपस्या की। इसके पश्चात् २०५२ के अलीगढ (रामपुरा) चातुर्मास में, २०५४ के हिण्डौन चातुर्मास में और २०५५ के धनोप चातुर्मास में भी मासखमण की तपस्या सानन्द सम्पन्न की । २०५३ के अलवर चातुर्मास में २४ उपवास तथा २०५६ के नागौर चातुर्मास में १८ उपवास की तपस्या सम्पन्न की। ___ आप प्राय: श्रावण व भाद्रपद माह में एकान्तर तप भी करती रहती हैं। संयम और तप की आराधना में आपके बढ़ते हुए कदम आज भी सबके लिये प्रेरणा स्रोत हैं। आपने अब तक मुख्य रूप से तिलोरा, आलनपुर, जयपुर, किशनगढ, मदनगंज, धनोप, पुष्कर, मेड़ता सिटी, अरटिया, पालासनी, जोधपुर, भोपालगढ, अजमेर, नागौर, आगूंचा, सरवाड़, हीरादेसर, भरतपुर, अजमेर, पीपाड़शहर, नसीराबाद, अलीगढ, अलवर, हिण्डौन सिटी आदि स्थानों पर चातुर्मास किये हैं। आपकी शान्त एवं सौम्य मुखमुद्रा आगन्तुकों को संयम-मार्ग में बढ़ने की विशेष प्रेरणा प्रदान करती है। • महासती श्री सुगनकंवर जी म.सा. आपका जन्म वि.सं. १९६६ कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को आगूंचा (भीलवाड़ा) में हुआ। आपके पिता श्री हरकचन्द जी रांका व माता श्रीमती झमकूबाई जी थीं। श्री मोतीसिंह जी कोठारी-कनकपुर वालों के साथ आपका विवाह हुआ। परन्तु वैवाहिक जीवन अधिक समय तक नहीं चल सका। असमय में ही आपके पति का स्वर्गवास हो जाने से आपको संसार की असारता का बोध हो गया। ___आपने वि.सं. २०१६ माघ शुक्ला पंचमी को अपने जन्म-स्थान में ही महासती जी श्री हरकंवर जी म.सा. (बड़े) की निश्रा में भागवती दीक्षा अंगीकार की। आपने वि.सं. २०४५ कार्तिक कृष्णा अष्टमी १ नवम्बर १९८८ मंगलवार को पुष्यनक्षत्र के योग में लगभग ४.३० घण्टे के संथारा पूर्वक मेड़तासिटी में समाधिमरण को प्राप्त किया। • महासती श्री इचरजकँवर जी म.सा. आपका जन्म वि.सं. १९७४ आषाढ कृष्णा एकम को जोधपुर में हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्री मिलापचन्दजी मुणोत तथा माता श्रीमती कल्याणकंवरजी मुणोत थीं। आपका विवाह अजमेर निवासी श्री मोहनलालजी नवलखा के साथ हुआ। आपने अपने पतिदेव से आज्ञा
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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