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________________ ८०९॥ -SE- ++--.-air- 455---- --- - - - RELarzas -LALJRA पंचम खण्ड : परिशिष्ट । माता-पिता के धार्मिक संस्कार आपको विरासत में मिले। दीक्षा के पूर्व आपका नाम 'मांगीलाल' था। आपने || आचार्यप्रवर १००८ श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से वि.सं. २००० आषाढ शुक्ला द्वितीया को खाचरोद ।। (म.प्र.) में भागवती दीक्षा अंगीकार की। आपकी दीक्षा में श्री हीरालालजी नांदेचा-खाचरोद का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा। बड़ी दीक्षा के पश्चात् आपका नाम 'मुनि माणकचन्दजी' रखा गया। आप वैराग्योत्पादक एवं सारगर्भित भजनों को तन्मय होकर गाते व सुनते थे, इसीलिये आपको ‘भजनानन्दी'। के नाम से भी जाना गया। अधिकांश चातुर्मासों में आप आचार्यप्रवर की सन्निधि में रहे। उदयपुर (संवत् २००१), जोधपुर (संवत् ।। २००६), पीपाड़ (संवत् २००७), मेड़ता (संवत् २००८) एवं जोधपुर (संवत् २००९) के चातुर्मास आपने स्वामीजी श्री सुजानमलजी म.सा. के सान्निध्य में , विजयनगर (संवत् २०१२) का चातुर्मास बड़े लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के सान्निध्य में, जोधपुर (संवत् २०३२) का चातुर्मास श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के सान्निध्य में तथा शेरसिंह जी की रीयां (संवत् । २०२७) और जयपुर (संवत् २०३१) का चातुर्मास स्वतन्त्र रूप से किया। आपका अन्तिम चातुर्मास विक्रम संवत् २०३२ में घोड़ों का चौक जोधपुर में श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के | सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। यहाँ आपने जीवन का अन्तिम समय निकट जानकर संलेखनापूर्वक संथारा ग्रहण कर | लिया। यह संथारा बहुत ही उत्कृष्ट रहा। ३५ दिनों तक संथारा चला। संथारे की अवधि में आपके चेहरे पर || प्रसन्नता, समता एवं शान्ति देखते ही बनती थी। अनेक परम्पराओं एवं धर्मों के लोगों ने आकर आपके दर्शन-वन्दन कर अपने आपको धन्य-धन्य माना । आत्म-विजय की यह अनुपम साधना थी। आचार्यप्रवर गुरुदेव ने भी बाड़मेर से | उग्रविहार करते हुए जोधपुर पधारकर साधना में साज दिया। विक्रम संवत् २०३२ फाल्गुन शुक्ला अष्टमी ९ मार्च | १९७६ मंगलवार को सायंकाल समाधिपूर्वक नश्वर देह का त्याग कर आप स्वर्गगमन कर गए। आपके ३५ दिनों के संथारे की स्मृति में जोधपुर के श्रद्धालु भक्तों ने घोड़ों के चौक में 'श्री वर्धमान जैन || रिलीफ सोसायटी' नामक संस्था प्रारम्भ की, जो वर्धमान हास्पिटल के माध्यम से आज भी निरन्तर सभी प्रकार के | रोगियों का उपचार करने में सक्रिय है। • श्री जयन्तलालजी म.सा. बाबाजी श्री जयन्तलालजी म.सा. का जन्म वि.सं. १९५३ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को पीपाड़ शहर में हुआ। | पिता श्री दानमलजी चौधरी तथा माता श्रीमती गुलाबकंवरजी से आपको धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए। आपने ५६ वर्ष की वय में वि.सं. २००९ मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को पाली-मारवाड़ में पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् आपका नाम जालमचन्दजी से 'जयन्तमुनि जी' कर दिया गया। बाबाजी म.सा. के नाम से विश्रुत श्री जयन्तमुनि जी म.सा. का संयम-जीवन साधना, सेवा और वैयावृत्त्य हेतु समर्पित था। संयम में आपका प्रबल पुरुषार्थ प्रेरणादायी था। आप सरल, संयमनिष्ठ और सहनशील व्यक्तित्व के धनी थे। आपके अधिकतर चातुर्मास आचार्य भगवन्त के सान्निध्य में हुए। टोंक (संवत् २०१७), मेड़ता (संवत् २०२१), भोपालगढ़ (संवत् २०२५), जोधपुर (संवत् २०२६), थांवला (संवत् २०२७) के चातुर्मास पं. रत्न श्री बड़े लक्ष्मीचन्दजी म.सा. के सान्निध्य में हुए। संवत् २०३२ से आपने जोधपुर में स्थिरवास विराजकर अपनी साधना को आगे बढाया।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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