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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं बाबाजी श्री हरखचन्दजी महाराज संयम के प्रति जागरूक होने के साथ आत्म-नियन्त्रण एवं अप्रमत्तता के सजग साधक थे । वे ओढ़ने के लिये मात्र अपने पास ढाई हाथ लम्बी एक चद्दर रखते, जिसमें पूरे पैर फैलाये नहीं जा सकते थे। उनका नियम था कि पैर फैलाकर नहीं सोना, पैर फैलाने से दुगुनी नींद आएगी। इस प्रकार से साधनाशील स्वामीजी द्वारा रत्नवंश परम्परा पर किये गए उपकार से हम सब उपकृत एवं श्रद्धावनत हैं। वि.सं. १९७९ के अजमेर वर्षावास में संथारा-समाधिपूर्वक इस महापुरुष ने समाधिमरण प्राप्त कर परलोक गमन कर दिया। • शासन सहयोगी श्री सुजानमल जी म.सा. जिन महापुरुष ने लघुवय मनोनीत आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. के वयस्क होने तक अन्तरिम काल में उनके प्रतिनिधि रूप में महिमाशाली रत्नवंश-परम्परा का कुशल नेतृत्व किया, वे थे–स्वनामधन्य स्वामी जी श्री | सुजानमलजी म.सा.। ___ आपका जन्म रत्ननगरी जयपुर के प्रतिष्ठित श्रेष्ठिवर्य सुश्रावक श्री मालीरामजी पटनी की धर्मशीला धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती दाखीबाई की कुक्षि से वि.सं. १९३८ आसोज कृष्णा नवमी को हुआ। बचपन से ही निसर्ग से प्राप्त व संत समागम से विकसित वैराग्यसंस्कार पुष्ट होते गये व वि.सं. १९५१ चैत्र शुक्ला दशमी को १३ वर्ष की अल्पायु में आपने नागौर में तपस्वी श्री बालचन्दजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती श्रमण दीक्षा अंगीकार की। ___नवदीक्षित मुनिश्री ने पं. रत्न श्री चन्दनमलजी म.सा. की सन्निधि में रहकर श्रुतज्ञान का अभ्यास किया, साथ ही अनेकों थोकड़े भी कंठस्थ किये। संगीत की ओर आपकी विशेष अभिरुचि थी। महीने में आप कम से कम चार उपवास संयम-जीवन के प्रारम्भ से ही किया करते । प्रवचन कला में आप कुशल थे। आपने जोधपुर, पीपाड़, जयपुर, पाली, ब्यावर, भोपालगढ़, नागौर, अजमेर, रीया, किशनगढ़, रतलाम, उदयपुर, अहमदनगर, सतारा, गुलेदगढ़, लासलगांव, उज्जैन आदि विभिन्न ग्राम-नगरों में वर्षावास कर जिनवाणी की पावन सरिता प्रवाहित की। आपने अपने जीवन में सम्प्रदाय के तीन आचार्यों बहुश्रुत आचार्य श्री विनयचन्दजी म.सा, परम पूज्य आचार्य श्री शोभाचंदजी म.सा. एवं चरितनायक आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. और तपस्वी शिरोमणि श्री बालचंदजी म.सा, चन्दन सम शीतल श्री चन्दनमल जी म.सा. प्रभृति महापुरुषों की सेवा की। परम पूज्य आचार्य श्री शोभाचंद जी म.सा. के देवलोक गमन के समय चतुर्विध संघ ने आप जैसे वय व दीक्षा स्थविर महामुनि के नेतृत्व में ही यह निर्णय लिया कि पूर्वाचार्य शोभाचंदजी म.सा. के आदेशानुसार मुनिश्री हस्तीमलजी म.सा. हमारे संघ के भावी आचार्य होंगे। पर मुनि हस्ती की उम्र अभी साढे १५ वर्ष की थी, वे स्वयं भी अध्ययन के लिए पर्याप्त समय चाहते थे और अभी दायित्व संभालने के अनिच्छुक थे, अतः शासन संभालने के लिये स्वाभाविक तौर पर सबकी दृष्टि आपकी ओर ही थी। लगभग चार वर्ष तक आपने कुशलतापूर्वक सम्प्रदाय की सारणा, वारणा, धारणा एवं संरक्षण का दायित्व संभाला। मनोनीत आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज को शासन संभालने में सर्वथा सक्षम पाकर आपने अपना अभिप्राय सहवर्ती संतों एवं चतुर्विध संघ के समक्ष रखा। तदनुसार वि.सं. १९८७ वैशाख शुक्ला तृतीया को जोधपुर में आचार्य पद महोत्सव नियत हुआ। ___नियत दिन अक्षय तृतीया के दिवस पर चतुर्विध संघ की साक्षी व हजारों की जनमेदिनी की उपस्थिति में आपने व श्री भोजराज जी म. ने स्वर्गीय आचार्य श्री शोभाचंद जी म.सा. की पूज्य पछेवडी किशोरवय मुनि श्री हस्तीमलजी म. को ओढाई तो सभी मानो मंत्रमुग्ध अपलक दृष्टि से यह नयनाभिराम प्रसंग देखते रह गये। उस
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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