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________________ ततीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड ७०५ सायं च ते स्मरणमस्तु शिवाय नित्यं, नामैव ते वसतु शं हृदयेऽस्मदीये ॥ हे गजेन्द्राचार्य ! मैं प्रात:काल आपके नाममन्त्र का अन्तर्मन से जप करता हूँ। मध्याह्न में भी आपके मंगलकारी नाममंत्र का स्मरण रहे । नित्य ही सायंकाल के समय में भी कल्याण के लिए आपका स्मरण रहे । हे देव ! हमारे हृदय में केवल आपका कल्याणकारी नाम ही बसा रहे। वन्दे सुकीर्तिधवलीकृतभूमिभागम् ' (श्री अर्हद्दासमुनिः) चारित्र्यचारुकवचावृत्तदिव्यदेहं विद्वत्सभागतजनार्चितपादपद्मम् । जैनेतिहासकुलशारदशुभ्रसोमं वन्दे सुकीर्तिधवलीकृतभूमिभागम्॥१॥ वैदुष्यपुण्यगुणसागरमद्वितीयं कारुण्यसोमरसपूरितहेमपात्रम्। शुद्ध विशुद्धहृदयं सदयं सुपूज्यं भक्त्या स्मरामि गणिनं हृदयाम्बुजस्थम् ॥२॥ स्नेहोपचारसुधयोपकृतोऽयमद्य कैस्ते भणामि वचनैः करुणां दयालो! भक्तिप्रभावविवशो यदुदाहरामि चापल्यमेव तदिदं नितरां गिरां मे ॥३॥ रूपासतीतनुज! केवलचन्द्रसूनो! माधुर्ययुक्तवचनामृतपूर्णसिन्धो! त्वत्सद्गुणौघगणनाकुशल स एव वर्षाम्बुबिन्दुगणनाकुशलो जनो यः॥४॥ मोहादिकर्मकलुषावृतदेहभाजः त्वदर्शनेन सहसा विमला भवन्ति । स्पर्शेर्मणेर्भजति चेल्लघुलौहखण्डम् चामीकरत्वममलं किमु तत्र चित्रम् ।।५।।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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