SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 767
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड ७०१ दीर्घकाल में भारत भू पर धर्म हेतु कर रहे विहार । सामायिक स्वाध्याय धर्म का अनुपल करते भव्य प्रचार । शुद्ध अहिंसा मय जीवन, जिनके जीवन का मूलाधार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की, हो जगती में जय जयकार ॥७॥ प्राचीनहस्ताङ्कितशास्त्रपत्रप्रशस्तिसंशोधनदत्तचितः। यश्चेतिहासोल्लिखने सयत्नः विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥८॥ हस्त लिखित प्राचीन शास्त्र के, पत्रों को करके संस्कार, जो निशिवासर करते रहते हैं प्रशस्ति का उचित सुधार। लिखते हैं इतिहास जैन का, कर प्रयत्न जो विविध प्रकार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की हो जगती में जय जयकार ॥८॥ श्रीमद् प्राज्ञगुरोः शिष्यः विद्यार्थी वल्लभो मुनिः । लिलेख श्रद्धया शीघ्रमुपाध्यायगुणाष्टकम् ।। हा हन्त! हस्तिगणिराज ! दिवं प्रयात: (पं. रत्न श्री घेवरचन्दजी म. 'वीर-पुत्र' द्वारा रचित अष्टक) पीपाड़ - नाम - नगरे शुभलब्धजन्मा, पूज्यः पिता विमल - 'केवलचन्द्र' नामा। 'रूपा' सती गुणवती जननी सुधन्या, भक्त्या भजन्तु भविनो!गणि- हस्तिमल्लम् ॥१॥ बाल्येऽपि संयमरुचिं रुचिरं सुविज्ञं, कान्तं च सौम्यवदनं सदनं गुणानाम् । मौनेन ध्यानसहितेन जपेन युक्तं, भक्त्या भजन्तु भविनो!गणि- हस्तिमल्लम्॥२॥ औदार्य-धैर्य-सहितं सुविचक्षणं च, स्वाध्याय-संघ-रचने प्रथमं प्रसिद्धम्। सामायिके प्रबल- प्रेरकमीशमिद्धं, पूज्यं जपन्तु जपिनं गणिहस्तिमल्लम्॥३॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy