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________________ ७०० नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं पर हित निरत अल्प मात्रा में, जो लेते हैं पथ्याहार । ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की, हो जगती में जय जयकार ॥३॥ ज्ञानानुरक्तो यमिनां वरेण्यः, भवाब्धिमज्जनताशरण्यः। जैनैरुपाध्यायपदेऽभिषिक्त; विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥४॥ ज्ञानार्जन में रत रहते जो, यतियों में हैं श्रेष्ठ अपार, भवसागर में डूब रहे जन के हित जो हैं शरणाधार । उपाध्याय बन कर मानस में करते सदा धर्म संचार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की हो जगती में जय जयकार ॥४॥ यस्योपदेशो भविनां हिताय, सदा सदाचारविचारचारु। सन्मार्गदर्शी सुतरां प्रसिद्धः, विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥५॥ जिनका प्रवचन भवप्राणी का करता है बहुविध उपकार, और सर्वदा जो करते हैं, सदाचार का शुद्ध विचार । सहज प्रसिद्ध सुपथ के दर्शक, ज्ञानी जिन पथ के अनगार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की हो जगती में जय जयकार ॥५॥ यः सर्वसाधुष्वनुशासनस्य, वृत्तिं तथा सच्चरितस्य वृद्धि । द्रष्टु सदा कांक्षति मानसेन विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥६॥ बढ़े समस्त श्रमण वर्गों में, अनुशासन का प्रिय व्यवहार, जिनका मन है चाह रहा जग, सत् चरित्र का सदा प्रसार । जो तन मन से रहते निशदिन, परम कारुणिक और उदार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की, हो जगती में, जय जयकार ॥६॥ सद् भारतेऽस्मिन् सुचिरं विहत्य, यः श्रावकेषु प्रयतः करोति । स्वाध्यायसामायिकयोः प्रचारं, विद्वद्वरोऽयं जयताद गजेन्द्रः ॥७॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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