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________________ निस्पृह एवं निर्भय योगी • श्री ज्ञान मुनि | • गुरु आम्नाय के प्रति निस्पृह स्थानकवासी समाज में गुरुधारणा (गुरु आम्नाय) की परम्परा रही है। इन वर्षों में यह परम्परा भी कभी-कभी | विवाद एवं विद्वेष का कारण बन रही है। एक परम्परा के श्रावक को दूसरी परम्परा के संत जब गुरु धारणा करवाते हैं तो विद्वेष, विवाद एवं क्षोभ का वातावरण बनता देखा जाता है । आचार्य भगवन्त इस विषय में बहुत सतर्कता एवं निस्पृहता रखते थे। गुरु धारणा करवाने से मेरे भक्त बढ़ जायेंगे, प्रायः धारणा है, पर वे अपने भक्तों को बढ़ाने की इस परम्परा से परे ही रहते थे। दो प्रसंग मुझे ध्यान में हैं (i) अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध व्यवसायी श्री बस्तीमलजी मेहता अपनी बहिन (स्व. भोपालचन्द जी सा.लोढ़ा के पुत्र स्व.डा.लक्ष्मी चन्द जी सा.की धर्मपत्नी) के कारण प्रायः जोधपुर आते रहते थे तथा बाद में संवत् २०२३ में आचार्य श्री के अहमदाबाद चातुर्मास में आचार्य श्री के अत्यन्त निकट सम्पर्क में आये। आचार्य भगवन्त के महान जीवन से प्रभावित होकर वे पुनः पुनः गुरु धारणा करवाने की विनति करने लगे। किन्तु उनकी पूर्व परम्परा से आचार्य श्री परिचित थे, अत: वे उनकी विनति को टालते रहे । गुरु धारणा नहीं करवाई। २०३४ में श्री बस्तीमल जी मेहता जोधपुर आये। पुनः गुरुधारणा के लिये हठाग्रह करने लगे, पर आचार्य श्री ने हंसते हुए कहा कि यह तो हठीला भक्त है। श्री बस्तीमल जी ने मुझे वार्तालाप में कहा -“दूसरे संत होते तो कब की गुरुधारणा करवा देते। कोई-कोई तो हाथ धोकर के गुरुधारणा के लिये पीछे ही पड़ जाते हैं, पर गुरुदेव हैं कि बार-बार कहते हुए भी हमारी सुनवाई नहीं करते, पर गुरुधारणा गुरुदेव भले न भी करावें, मेरी आस्था पहले से अधिक दृढ़ ही हुई है।" (ii) डेह निवासी श्रीपालचन्द जी बेताला भी आचार्य भगवन्त के २०२६ के नागौर वर्षावास में सम्पर्क में आये तब से ही वे गुरुधारणा देने के लिये पुनः पुनः प्रार्थना करते रहे। वे कहते रहे, गुरुदेव टालते रहे। संवत् २०४० में आचार्य श्री का वर्षावास जयपुर में था। तब तक श्रीपालचन्द जी भी सपरिवार जयपुर में बस गये थे। श्री सिरेहमल जी नवलखा के बंगले पर (जहाँ आचार्य भगवन्त विराज रहे थे) एक दिन श्रीपाल चन्द जी अड़ गये। मुझे गुरुधारणा करवायेंगे तभी यहाँ से जाऊँगा नहीं तो बैठा रहूँगा। मैं उनकी बात सुन रहा था। मैंने सहज भावुकतावश आचार्य भगवन्त से अर्ज की-"भगवन् उन्हें गुरु धारणा करवा दें।” आचार्य श्री ने स्मित हास्य बिखेरते हुए फरमाया-"आप इनके बगैर मुआवजे के वकील बने हैं।” पर इतना कहकर फिर टाल गये। हठीला भक्त भी मानने वाला नहीं था। आखिर आचार्य श्री ने बेताला जी को फरमाया कि आपके पिताजी श्री मानमल जी बेनाला स्वीकृति देंगे तब गुरुधारणा दी जा सकती है। आखिर डेह से श्री मानमल जी बेताला के आने पर, उनके अर्ज करने पर भक्त का मन भगवन्त को रखना पड़ा। आज की परिस्थिति में ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते हैं। (iii) आचार्य भगवन्त का २००२ में मेड़तासिटी में चातुर्मास था। चातुर्मासोपरान्त आचार्य श्री विचरण करते हुए बड़ी रीया पधारे। बड़ी रीया आचार्य श्री सायंकाल अचानक पधारे तथा सर्दी के दिन थे, सूर्य अस्त होने में | थोड़ा ही समय था। उस समय बड़ी रीया में स्थानक नहीं था। अतः मकान की गवेषणा कर ही रहे थे, तब एक
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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