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भविष्यद्रष्टा व वचन-सिद्धि के योगी
श्री पी. एम. चोरड़िया
आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. अल्पभाषी थे । वे गूढ़ से गूढ़ विषय का सार कुछ ही नपे तुले शब्दों में | प्रकट कर देते थे । भाषा समिति एवं वाणी विवेक के प्रति विशेष जागरूक संत थे। उनकी वाणी ब्रह्मवाक्य हुआ करती थी। अपने विशिष्ट ज्ञान एवं साधना के बल से उन्हें भविष्य की घटनाओं का ज्ञान जाता था । भविष्य के घटना - चित्र का उल्लेख वे अपनी प्रेरणाओं और उपदेश से भक्तों के समक्ष इस प्रकार करते, जिसका उन्हें अहसास भी नहीं होता था। मेरे जीवन में भी ऐसे कई प्रसंग आए, जब उन्होंने प्रेरणा एवं सम्यक् मार्गदर्शन देकर मुझे | जागरूक बनाया। आपका आशीर्वाद पाकर मैं धन्य हो गया । आज भी जब उन सबका चिन्तन करता हूँ, तो उस | ज्योतिपुरुष एवं अध्यात्मयोगी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक जाता है । यहाँ पर कुछ संस्मरण प्रस्तुत हैं
(१) सन् १९७९ में आचार्य श्री का अजमेर में चातुर्मास था । आप लाखन कोटड़ी स्थानक में विराज रहे थे । | इसी चातुर्मास में मद्रास में स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार हेतु एक स्वाध्याय समिति के गठन की चर्चा चली। उसके | विधान का प्रारूप भी तैयार किया गया। कुछ समय पश्चात् मुझे आचार्यप्रवर के दर्शन करने हेतु अजमेर जाने का | सौभाग्य प्राप्त हुआ । आचार्य भगवन्त के समक्ष चर्चा करने पर उनके मुख से अनायास निकल पड़ा - वर्ष भर में यह कार्य हो जायेगा । मैंने कहा, गुरुदेव । इसे एक महीने में ही पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। मद्रास आकर पूरा प्रयास किया, लेकिन कोई न कोई बाधा या अड़चन उपस्थित हो जाती। साल भर पूरा होने पर ही समिति का पंजीकरण सम्भव हो सका ।
(२) आचार्य श्री के मद्रास चातुर्मास का प्रसंग था । मेरी धर्मपत्नी की तपस्या चल रही थी। प्रतिदिन आचार्य भगवन्त के मुखारविंद से ही पच्चक्खान लिये जाते थे। जिस दिन २० की तपस्या थी, उस दिन हमेशा की भांति सायंकाल मैं आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हुआ। मुझे देखकर आचार्य श्री ने सहज ही पूछा - "बहन की तपस्या | कैसी चल रही है ?” उस दिन पित्त एवं उल्टी की शिकायत ज्यादा थी, अतः मैंने स्थिति बताई तथा अर्ज किया कि | २१ उपवास कर पारणा के भाव हैं। आचार्य श्री कुछ समय तो मौन रहे, फिर बोले - "धैर्य रखो। गर्म पानी के उपयोग से पित्त की प्रकृति शांत हो सकती है।” आचार्य श्री की कुछ समय की चुप्पी तथा प्रेरणापूर्वक सन्देश से मुझे ऐसा अहसास हुआ कि आचार्य श्री का हमारे चोरड़िया परिवार को आशीर्वाद प्राप्त है । जब मैंने श्रीमती जी | को यह वार्तालाप सुनाया, तो उनका मनोबल जाग उठा और मासखमण की तपस्या करने का संकल्प कर लिया। | वास्तव में यह ३० दिन की तपस्या सुखसाता पूर्वक सम्पन्न हुई। यह सब आचार्य देव की कृपा का ही फल था ।
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