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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड कृतित्व के स्वर्णिम अध्याय हैं।
ऐसे विराट व्यक्तित्व का बोध तो अनुभवगम्य ही हो सकता है, शब्दों में नहीं गूंथा जा सकता है । संक्षेप में || यही कहा जा सकता है -
तुम्हारे नाम में यश था, तुम्हार वचन में गम था, त्याग और संयम की प्रतिमूर्ति, सारा यग तर बस में था !
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