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________________ ર૬૮ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं कॉलोनी होते हुए महावीर जयन्ती पर करुणानाथ महावीर नगर विराजे । श्री प्रकाशजी कोठारी ने विवाह में फूलों की सज्जा का प्रयोग नहीं करने एवं रात्रि भोजन नहीं करने का व्रत लिया। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से आचार्य श्री का जयपुर विराजना हुआ। अक्षयतृतीया पर १५ तपस्वी बहनों ने श्रद्धा समर्पित की एवं शीलव्रत के अनेक नियम हुए। आराध्य गुरुदेव के आचार्य पद आरोहण के इस दिवस पर श्री सुमेरसिंहजी बोथरा ने वर्ष में ६१ दिन, श्री लालचन्दजी कोठारी, श्री ज्ञानचन्दजी कोठारी एवं श्री मोतीचन्दजी कर्णावट ने ३१ दिन तथा श्री ज्ञानचन्दजी बालिया ने १५ दिन संघ-सेवा में देने का संकल्प लेकर गुरु चरणों में आस्था व्यक्त की। चरितनायक के प्रति श्रद्धालु गुरु भक्त श्रावकों की अपार | आस्था ही थी कि वे संघ-सेवा के लिए अपना गृहस्थ जीवन का मूल्यवान समय देने के लिये तत्पर होते तथा गुरुदेव भी उन्हें कर्मक्षय का नितनूतन मार्ग प्रशस्त करते रहते। यहाँ पर अपराह्न की वाचना नियमित रूप से चलती रही। संयमधन गुरुदेव से बारह व्रत अंगीकार कर श्री चन्द्रराज जी सिंघवी ने अपना जीवन संयमित बनाया। • आचार्य श्री रत्नचन्दजी म. की १४३ वीं पुण्यतिथि ___ आचार्यश्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की १४३वीं पुण्यतिथि पर ३० मई ८८ ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दशी को १४३ दया एवं पौषध हुए तथा चरितनायक ने उन पूज्यप्रवर महापुरुष का गुणानुवाद करते हुए फरमाया-"महावीर के प्रतिनिधि के रूप में धर्माचार्यों की महत्ता सांसारिक प्राणियों के लिए बनी हुई है। संसार में तीन बड़े उपकारी माने गये हैं १. माता-पिता, जो जन्म देकर बड़ा करते हैं। २. जीवन को लौकिक व्यवहार में सक्षम बनाने वाला गुरु, कलाचार्य, शिक्षक आदि। ३. आध्यात्मिक क्षेत्र में धर्म का बोध देने वाले आध्यात्मिक गुरु । आज हम ऐसे धर्म गुरु रूप धर्माचार्य का स्मृति दिवस मना रहे हैं जो जैन जगत् एवं सन्त समुदाय में कोहिनूर हीरे की भांति प्रकाश फैलाने वाला था। आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी महाराज की परम्परा २२५ वर्षों से जयपुर की जनता को प्रतिबोध देती आ रही है। सभी आचार्यों एवं बड़े-बड़े सन्तों ने यहाँ चातुर्मास कर समाज को | धर्मदेशना से उपकृत किया है।" • सवाईमाधोपुर की ओर २२ जून बुधवार ज्येष्ठ शुक्ला एकम को सवाईमाधोपुर चातुर्मास के लक्ष्य से विहार कर पूज्य चरितनायक सांगानेर गोशाला में पधारे। श्रावक-श्राविकाओं ने यहाँ भी बड़ी संख्या में आकर अपने गुरुदेव से जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को उज्ज्वल बनाने हेतु मार्गदर्शन लिया । यहाँ से पूज्यपाद गुरुदेव ने वाटिका मोड के शिवमन्दिर में रात्रि विश्राम किया। विहार में सन्तों को जो भी उपयुक्त निरवद्य स्थान मिलता है, वहाँ पर ही रात्रि विश्राम किया जाता है। कभी तरु के तले, कभी मन्दिर में, कभी विद्यालय भवन में, कभी पंचायत भवन में तथा कभी किसी बाड़े में रहकर भी वे अपने चित्त में किसी प्रकार के भय एवं विषम भावों से आक्रान्त नहीं होते। आचार्य श्री की सहजता एवं समत्वभावों से न केवल सहवर्ती सन्त अपितु श्रावक गण भी अभिभूत थे। औद्योगिक स्थलों में ठहरते समय श्रमिक वर्ग को निर्व्यसनता की एवं उद्योगपतियों को उदारदृष्टि की प्रेरणा करना आपश्री का स्वभाव था। आपने मार्ग में
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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