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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २६७ के साथ मनाई गई। इस अवसर पर १५५ दया- संवर हुए व ७५ व्यक्तियों ने स्वाध्याय का संकल्प किया। बालक-बालिकाओं व युवाओं के धार्मिक अध्ययन हेतु यहाँ २२ से २८ दिसम्बर १९८७ तक धार्मिक स्वाध्याय - शिक्षण शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें २०० शिविरार्थियों ने ज्ञानार्जन किया। पूज्यप्रवर आचार्य हस्ती के पावन जन्म-दिवस पौष शुक्ला चतुर्दशी दो जनवरी १९८८ से १२ दम्पतियों ने आजीवन व १० दम्पतियों ने एक वर्ष का शीलव्रत अंगीकार कर साधना-मार्ग में चरण बढ़ाते हुए अपना जीवन संयमित किया । निरतिचार संयम पालक, महाव्रत आराधक आराध्य गुरुदेव के जन्म-दिवस के इस प्रसंग पर ३१ श्रावक-श्राविकाओं ने श्रावक के बारहव्रत अंगीकार कर उनके संयममय जीवन का सच्चा अनुमोदन किया । जयपुर प्रवास • अशक्तता होते हुए भी दृढ मनोबली पूज्य चरितनायक किशनगढ से विहार कर डीडवाना, बांदर सींदरी, दातरी, |पडासोली, दूदू आदि क्षेत्रों में धर्मोद्योत करते हुये जयपुर पधारे। जयपुर में आपका विभिन्न उपनगरों में विराजना हुआ। आपका जब कभी भी किसी के आवास पर विराजना होता, तो उसे कोई न कोई नियम अवश्य कराने का | लक्ष्य रखते । श्रद्धाशील भक्त भी आराध्य गुरुदेव की प्रेरणा को जीवन में उतार कर व उनसे व्रत - नियम लेने में | अपना अहोभाग्य व उद्धार ही समझते तथा त्याग - प्रत्याख्यान को संयम - सुमेरु गुरु भगवन्त से कृपा प्रसाद के रूप में ही ग्रहण करते । श्री अजीतराज जी मेहता व श्री चुन्नीलाल जी ललवानी के बंगलों पर विराजने पर उन्होंने क्रमश: | दो वर्ष व एक वर्ष के लिए शीलव्रत का संकल्प किया। सुबोध कालेज परिसर में विराज कर पूज्यपाद महावीर नगर | पधारे । करुणहृदय श्री डी. आर मेहता व श्री भंवरलाल जी कोठारी ने वनस्पति को कष्ट का अनुभव कैसे होता है, विषय पर ज्ञान दिवाकर गुरुदेव से चर्चा का लाभ लिया । २८ जनवरी १९८८ को आचार्यप्रवर आदि ठाणा १८ एवं महासती श्री सुशीलाकंवर जी म.सा. आदि सतियों के सान्निध्य में महावीर नगर, जयपुर में विरक्त बंधु श्री रामावतार जैन (मीणा) निवासी उखलाना की भागवती दीक्षा | सम्पन्न हुई । जोधपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कल्याणमल जी लोढ़ा ने मुमुक्षु के प्रति शुभकामना प्रकट | करते हुए जैन धर्म में प्रतिपादित प्रव्रज्या एवं मानवीय मूल्यों को उजागर किया । आचार्यप्रवर ने अपने उद्बोधन में | कहा - " आज विश्व को शस्त्रधारी सैनिकों की नहीं, शास्त्रधारी सैनिकों की आवश्यकता है। समाज में | तप-संयम का बल जितना बढ़ेगा, उतनी ही सुख-शान्ति कायम होगी। वीतराग पद पर कोई भी व्यक्ति अग्रसर हो सकता है, चाहिए दृढ़ इच्छा शक्ति, वैराग्य और उत्साह । " बड़ी दीक्षा के पश्चात् नवदीक्षित मुनि का नाम 'अर्हद्दास मुनि' रखा गया। श्री इन्दरचन्दजी डागा एवं श्री गोपी जी कुम्हार ने सदार आजीवन शीलवत का नियम लिया । पूनमचन्दजी बडेर के बंगले, दीक्षा के पश्चात् साधना भवन बजाज नगर, रामबाग स्थित गुरुभक्त सुश्रावक श्री एस. आर. मेहता के बंगले होकर भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति परिसर में विकलांगों को निर्व्यसनता की प्रेरणा करते हुए गुलाब निवास फरसकर पूज्यपाद ४ फरवरी ८८ को लालभवन पधारे । गुरुभक्त | चिन्तक श्रावक श्री श्रीचन्दजी गोलेछा ने सन्त- सती मण्डल में ज्ञान की अभिवृद्धि विषयक विचार गुरुचरणों में प्रस्तुत | किये। लाल भवन से बरडिया कॉलोनी, मोती डूंगरी फरसकर आप जवाहर नगर पधारे व श्री राजेन्द्र जी पटवा के | बंगले पर विराजे । यहां से आप आदर्शनगर पधारे। मोती डूंगरी में फाल्गुनी पूर्णिमा ३ मार्च ८८ को सवाईमाधोपुर, अलीगढ, रामपुरा, चौथ का बरवाड़ा आदि स्थानों के श्रावक विनति लेकर उपस्थित हुए। एवरेस्ट कॉलोनी, न्यू लाइट
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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