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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २६४ या मीठे का त्याग करने का संकल्प किया। धर्म प्रभावना व स्वाध्याय प्रसार के लक्ष्य से पूज्य आचार्य भगवन्त ने साधु भाषा में अगला वर्षावास अजमेर में करने की स्वीकृति फरमाई। दिल्ली के युवाबन्धु श्री सुभाषजी ओसवाल के पत्र के उत्तर में २८ अप्रेल १९८७ को आपने लिखवाया- “हमारे पूर्वाचार्यों ने स्थानकवासी जैन समाज का आधार शास्त्रानुकूल शुद्ध आचार को माना है। आडम्बर रहित निर्दोष तप-त्याग ही हमारा धर्म चिह्न है। आज युवक सुधारवाद की हवा में बह रहा है। वह समझ रहा है कि | समय के अनुसार धर्म के आचार-विचार में परिवर्तन होना चाहिए। उनके अनुसार धर्म को टिकाने के लिए परिवर्तन आवश्यक है। यहाँ ध्यान रखना होगा कि समय जैसा आज बदला है, वह आगे भी बदलता रहेगा, किन्तु ऐसा | परिवर्तन मूल आचार में नहीं होता। यदि मूल नियम भी परिवर्तनीय हों तो जैन संघ आज कहाँ का कहाँ चला | जाता। अभी तो ध्वनि - यन्त्र, पैर में चप्पल, चलने को यान - वाहन, शौच के लिए फ्लश शौचालय जैसी कुछ ही | समस्याएँ हैं। अगली शताब्दी में और कितने ही नवीन प्रश्नों के साथ आचार-सुधार की लाइन में बढ़ने को उत्सुक होंगे, यथा साधु के पास बिना भाई के साध्वी को पढ़ाना, साधु द्वारा साध्वी को वन्दन, एक पाट पर आसन, स्थानाभाव से एक मकान में रहना आदि प्रबल रागी गृहस्थ के लिए वर्ज्य नहीं, तब उपशान्त रागी साधु के लिए वर्ज्य क्यों ? क्या वे इतने विश्वास के योग्य भी नहीं ? हर युग व काल में युवकों को ऐसे प्रश्नों, प्रतिप्रश्नों का | शास्त्रज्ञान और अनुभव के आधार से चिन्तन कर समाधान प्राप्त करना होगा । त्रिकालज्ञ श्रमण भगवान द्वारा श्रमण-श्रमणियों के लिए नियत की गई साधु समाचारी स्वपर कल्याणक है, साथ ही शासन प्रभावना की हेतु भी है। | ज्ञानियों द्वारा सुनिश्चित यह मर्यादा जैन साधु की पहिचान है । यदि युग प्रभाव से इसी प्रकार मर्यादा में संशोधन | समझौते करते रहे तो साधुता कहाँ शेष रहेगी, मात्र वेश ही रह जायेगा । I १ मई अक्षय तृतीया का पावन पर्व पूज्यपाद के सान्निध्य में आदिनाथ पारणक दिवस, आपश्री के ५७ वें आचार्य पदारोहण दिवस व आचार्यप्रवर श्री कजोड़ीमलजी म.सा. की पुण्यतिथि के रूप में त्याग तप व संघ-सेवा के | उत्साह से उल्लसित वातावरण में मनाया गया। पूज्यपाद आचार्य भगवन्त ने माधुर्य एवं कोमलता की प्रेरणा देते हुए अपने मंगलमय प्रेरक उद्बोधन में फरमाया - उसीप्रकार प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन को मिठास और कोमलता से ओतप्रोत करे।" वर्षीतप करने वाली २४ बहनों को स्थानीय संघ के द्वारा सम्मानित किया गया। " जैसे इक्षु में मधुरता और कोमलता का सर्वप्रिय विशिष्टगुण है, भोपालगढ़ से मांगलिया की ढाणी, रतकूडिया, खांगटा, चौकड़ी, खवासपुरा, पुल्लू, गगराना, इन्दावड़ आदि विभिन्न ग्राम-नगरों में विचरण कर धर्म जागरण करते हुए आप १९ मई को मेड़ता सिटी पधारे जहाँ अनेक विशिष्टजनों के साथ राजस्थान के शिक्षा मन्त्री श्री दामोदर प्रसादजी ने दर्शनलाभ लिया । यहाँ आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की १४२ वीं पुण्यतिथि पर दया, उपवास, पौषध आदि का विशेष आयोजन हुआ । वहाँ से १२ जून को ठाणा ६ से आपका विहार हुआ। मार्ग में लाम्पोलाई, पादू, भेरूंदा, थांवला, तिलोरा पुष्कर आदि क्षेत्रों को अपनी पद रज से पावन करते हुए पूज्यपाद ने चातुर्मासार्थ अजमेर की ओर प्रयाण किया । अजमेर चातुर्मास (संवत् २०४४) • अजमेरनगरवासी दीर्घकाल से पूज्यपाद चरितनायक के चातुर्मास के लिये प्रयासरत थे । ६७ वर्ष पूर्व इसी पुण्यधरा पर पूज्यप्रवर ने पूज्यपाद आचार्य श्री शोभाचंद जी म.सा. के मुखारविन्द से श्रमण दीक्षा अंगीकार कर (मोक्षमार्ग में अपने कदम बढ़ाये थे । पूज्य आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म. सा. प्रभृति महापुरुषों व महासती श्री छोगांजी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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