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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २५१ बंद कर दिया। धर्म-साधक देश से अलग हो, ऐसी बात नहीं है। धर्म साधक चाहते हैं कि देश में शांति हो, देश कल्याण के रास्ते पर चले। आप जानते हैं कि सर्दी के समय गर्म साधन की आवश्यकता होती है और गर्मी के समय ठंडे साधनों की। गर्मी की वेदना शांत करने के लिए ठंडा उपाय किया जाता है। आज देश में भी गर्मी है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह हरेक के मन में स्नेहामृत का सिंचन करे । इस उफान को शांत करने के लिये सभी समाज के लोगों का सहयोग आवश्यक है।” “देश की शांति बनाये रखने में सबसे सद्भावमय आचरण जैनियों को करना होगा। जैन समाज आगे आवे और देश में शांति कायम करने में अपना सहयोग दे। जैन धर्म की शिक्षा मात्र जैनियों के लिये ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के लिये है।" __“देश को आजादी अहिंसा से मिली, अत: देश का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो । या ईसाई हो, ऐसे समय में उसका कर्तव्य है कि देश में शांति कायम करने में उत्तेजना से बचा रहे।" रेनबो हाउस में यह ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न कर विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को पूज्यपाद विहार कर महामन्दिर पधारे। यहाँ आपने अपने प्रवचन में जोधपुरवासियों को स्वाध्याय का सन्देश देते हुए फरमाया–“सन्तों के जाने के पश्चात् उनकी वाणी एवं धर्म क्रिया को न भूलें। निराकार उपासक सिक्ख, आर्यसमाजी एवं मुस्लिम बन्धुओं की तरह शास्त्र को सम्मुख रख कर स्वाध्याय व साधना करें । जैसे-सूरदास ने हाथ छुडाकर जाने पर भी दिल से इष्ट भक्ति को नहीं जाने दिया, उसी प्रकार भक्ति को साधना का अंग समझें।" महामन्दिर से करुणाकर गुरुदेव मुथाजी का मन्दिर विराज कर घोड़ों का चौक पधारे। यहाँ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को आचार्य श्री पद्मसागर जी म. आपके दर्शनार्थ व सुख-शान्ति पृच्छा हेतु पधारे। घोडों का चौक के अनन्तर पूज्यपाद निमाज की हवेली, सिंहपोल, कन्या पाठशाला, उदयमंदिर फरस कर पावटा पधारे। २८ नवम्बर १९८४ मार्गशीर्ष शुक्ला षष्ठी संवत् २०४१ बुधवार को यहां करुणाकर गुरुदेव के सान्निध्य में बालब्रह्मचारिणी | मुमुक्षु बहिनों सुश्री निर्मला जी पीपाड़ा (सुपुत्री श्री घीसूलालजी पीपाड़ा, बल्लारी) एवं सुश्री सुशीला जी चौपड़ा (सुपुत्री श्री भंवरलालजी एवं श्रीमती बिदामबाई जी चौपड़ा, जोधपुर) की भागवती श्रमणी दीक्षा त्याग, वैराग्य एवं उमंग भरे वातावरण में सम्पन्न हुई। दीक्षा समारोह में साध्वी प्रमुखा प्रवर्तिनी महासती श्री सुन्दरकंवर जी म.सा, उपप्रवर्तिनी महासती जी श्री बदनकंवर जी म.सा. आदि ठाणा १८ का सान्निध्य भी प्राप्त था। दीक्षा समारोह में ज्ञानगच्छीय पं. रत्न श्री घेवरचंद जी म.सा. ठाणा ५ व महासतीजी श्री भीखाजी, सुमतिकंवर जी आदि ठाणा ८ का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। मुमुक्षु बहिनों के अभिनिष्क्रमण के इस महान् प्रसंग पर वीरपिता श्री घीसूलालजी पीपाड़ा, वीरपिता श्री भंवरलालजी चौपड़ा व सुश्रावक श्री चम्पालाल जी बागरेचा ने सदार आजीवन शीलवत अंगीकार कर सच्चा त्यागानुमोदन किया। बड़ी दीक्षा के उपरान्त नव दीक्षित महासती द्वय के नाम क्रमश: नलिनी प्रभा जी म.सा. एवं सुश्रीप्रभाजी म.सा. रखा गया। गुरुभक्त श्रावक न्यायाधिपति श्री श्रीकृष्णमलजी सा लोढा ने करुणाकर गुरुदेव के अपने आवास पर विराजने की खुशी में आजीवन शीलवत अंगीकार कर श्रद्धाभिव्यक्ति की। यहां से पूज्यप्रवर महावीर भवन, नेहरु पार्क विराजे। यहां दर्शनार्थ उपस्थित ७ विरक्त बहिनों को आपने दृढता पूर्वक राग से विराग की ओर बढ़ने की प्रेरणा की। मौन एकादशी के दिन निष्ठावान भक्त श्री दौलतमलजी चौपड़ा, श्री सायरचंदजी कांकरिया एवं श्री शान्तिचन्दजी भण्डारी ने सदार आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपने जीवन को संयमित बनाया। यहाँ जैन दर्शन के मूर्धन्य विद्वान् डॉ. नथमल जी टाटिया आपके दर्शनार्थ उपस्थित हुए एवं विभिन्न विषयों पर आगमों के तलस्पर्शी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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