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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २१९ पद सुशोभित किया है। ऐसे महनीय दीक्षा स्थविर, वय-स्थविर, पद-स्थविर व ज्ञान-स्थविर पुण्य निधान आराध्य गुरु भगवन्त के चरणों से पवित्र होने का तमिलनाडु की धरा को यह प्रथम अवसर मिला है और क्वचित् दूसरी बार मिलना भी संभव नहीं है। इस देव दुर्लभ अवसर का लाभ उठाने में हमें कोई कोर कसर नहीं रखनी है, अपने पूर्वजों की अतृप्त अभिलाषा को पूरा कर हमें तमिलनाडु में परमपूज्य भगवन्त के सन्देशों व जिनवाणी की पावन गंगा को प्रवाहित करने के भगीरथ प्रयासों में सहयोगी बनना है। ज्यों-ज्यों चातुर्मास सन्निकट आ रहा था, भक्तों के मन में कुछ कर गुजरने का उत्साह उत्ताल तरंगों की भांति बढ़ता जा रहा था। कुंडीतोप, धोबीपेट रायपुरम आदि उपनगरों में सामायिक स्वाध्याय का उद्घोष करते हुए पूज्यपाद का शिष्य | मंडली के साथ ठाणा १० से संवत् २०३७ की आषाढ कृष्णा त्रयोदशी २५ जुलाई १९८० को उल्लसित |श्रावक-श्राविकाओं द्वारा उच्चरित जय-जयनादों के बीच विशाल जनमेदिनी के साथ, चातुर्मासार्थ साहूकार पेठ स्थित | धर्मस्थानक में मंगल प्रवेश हुआ। यह पूज्यवर्य का ६० वां चातुर्मास था। चिर प्रतीक्षा के बाद प्राप्त इस वर्षावास का मद्रास वाले भाई बहिन पूर्ण लाभ ले रहे थे। चातुर्मासार्थ पूज्य गुरुदेव के मंगल प्रवेश के साथ ही धार्मिक गतिविधियों ने जोर पकड़ लिया। प्रात: प्रार्थना से लेकर रात्रि में ज्ञानगोष्ठी पर्यन्त सभी कार्यक्रमों में मद्रासवासी पूर्ण अभिरुचि व उत्साह से भाग लेकर ज्ञानाराधन कर अपने आपको समृद्ध कर रहे थे। साहूकार पेठ धर्मस्थानक का विशाल हाल प्रवचन में श्रद्धालु श्रोताओं की उपस्थिति के कारण छोटा पड़ने लगा। चातुर्मास में राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक आदि प्रान्तों के श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं के आराध्य गुरुदेव के दर्शनार्थ सतत आवागमन बना रहा। __महामहिम आचार्य भगवन्त अपनी पातकप्रक्षालिनी भवभयहारिणी वाणी-सुधा द्वारा धर्म के मर्म को अपनी सहज सुबोध सुग्राह्य भाषा में समझाते तो उपस्थित श्रद्धालु जन 'खम्मा, खम्मा' बोल उठते। प्रवचन सुधा में अवगाहन कर वे अपने आपको धन्य-धन्य बना रहे थे। पूज्यवर्य ने यथासमय अपने जीवन निर्माता गुरुदेव आचार्य भगवन्त पूज्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा, आदर्श साधुता के श्रेष्ठ पर्याय, मरण विजेता गुरुभ्राता श्री सागरमल जी म. सा. आदि महापुरुषों की पुण्यतिथियों के प्रसंगों पर उनके गुणानुवाद करते हुए जीवन को उन्नत व संयत बनाने की प्रेरणा की। सम्वत्सरी महापर्व के दिन तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री प्रभुदासजी पटवारी ज्ञान-क्रिया के उत्कृष्ट आराधक , जिनशासन सरताज पूज्यप्रवर आचार्य श्री हस्ती के पावन दर्शनार्थ पधारे। अनन्त पुण्यनिधान साधनातिशयसम्पन्न आचार्यदेव के पावन दर्शन व उनकी आध्यात्मिक आनन्द प्रदायिनी अमोघवाणी से निःसृत जिनवाणी को श्रवण कर माननीय राज्यपाल महोदय ने अपने आपको धन्य-धन्य माना। क्षमापर्व संवत्सरी पर पूज्यप्रवर ने “भूलों का पुनरावर्तन रोकना, क्षमादिवस मनाने की सार्थकता है" इस सार गर्भित संदेश से जन-जन को आत्मोत्थान की प्रेरणा की। जिनशासन प्रभावक आचार्य भगवन्त का चिन्तन था कि अहिंसा, अनेकान्त व अपरिग्रह एक दूसरे के पूरक ही नहीं, वरन् सहधर्मी जीवन मूल्य हैं? श्रमण भगवान महावीर के ये सार्वजनिक, सार्वकालिक चिन्तन सत्य-सिद्धान्त विश्व शांति व मानव मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। युग मनीषी इतिहासवेत्ता आचार्य देव के मन में एक पीड़ा थी कि जो जैनधर्म कभी दक्षिण में जन-जन का धर्म था, वह आज व्यवसायी वर्ग तक सिमट गया है। आज पुन: तमिलभाषी भाई-बहिनों को श्रमण भगवान महावीर के सिद्धान्तों एवं जैन जीवन शैली से जोड़ने की | आवश्यकता है।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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