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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २१८ फरमाया - अहिंसक समाज में दहेजप्रथा क्षोभजनक है, समाज के लिये यह कलंक है । समाज को इसे दूर कर प्रेरित कई व्यक्तियों ने इस संबंध में संकल्प लेकर महिलाओं की पीड़ा को दूर करना चाहिये । प्रेरक उद्बोधन | समाज सुधार की दिशा में अपने कदम बढ़ाये । यहाँ से भगवन्त माम्बलम् पधारे। पं. रत्न श्री छोटे लक्ष्मीचंदजी म.सा, पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा. (वर्तमान आचार्य प्रवर) भी अन्य उपनगरों को फरस कर यहाँ पूज्य गुरुदेव की सेवा में पधार गये । १९ जून ८० को आप मैलापुर पधारे। जोधपुर विराजित पं. रत्न श्री चौथमलजी म. सा. का द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी को संथारा पूर्वक स्वर्गगमन के समाचार से मैलापुर की व्याख्यान सभा ने श्रद्धांजलि | सभा का रूप ले लिया । पूज्यप्रवर ने अपने सहदीक्षित गुरुभ्राता मुनि श्री के प्रति भावपूर्ण मार्मिक उद्गार व्यक्त करते हुए उनका गुण स्मरण किया। पं. रत्न श्री चौथमलजी म. सा. सरल, सहज, शान्त, प्रसन्नवदन, सेवाभावी, मधुर व्याख्यानी, आगम ज्ञाता संत थे। आपने अनेक प्रान्तों में विचरण विहार कर धर्म-प्रचार व जिन - शासन की प्रभावना में अपना महनीय योगदान किया। दिवंगत मुनिवर्य के गुण-स्मरण के पश्चात् चार लोगस्स का ध्यान कर श्रद्धांजलि प्रस्तुत की गई। जोधपुर में ही २१ जून को महासती ज्ञानकंवर जी म.सा. के संथारा पूर्वक स्वर्गारोहण पर श्रद्धांजलि दी गयी । २३ जून को पूज्य आचार्यप्रवर अडयार पधारे। यहाँ धर्म प्रेरणा कर आप रायपेठ व इसके अनन्तर नक्शा | बाजार पधारे। यहां द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दशी दिनांक २७ जून को क्रियोद्धारक आचार्य भगवन्त श्री रत्न चन्द जी म. सा. की १३५ पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में सामूहिक व्रताराधन का आह्वान किया गया। इस अवसर पर १३५ से अधिक दया- पौषध हुए। (ज्येष्ठ माह दो होने से यह पुण्य तिथि दूसरी बार मनायी गई ।) चिन्ताद्रिपेठ, इग्मोर, पुरुषवाक्कम, शूले आदि उपनगरों में धर्म ज्योति का प्रकाश फैलाते हुए पूज्यपाद पेराम्बूर | पधारे। यहाँ प्रवचन में आपने जीवन में धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हुए फरमाया- “संसार की बड़ी से बड़ी सम्पदा पाकर भी जीवन में धर्म के बिना शान्ति नहीं मिलती, अतः धन-जन से ममता बढ़ाना उचित नहीं । कामनाओं पर नियन्त्रण, कोमलता का त्याग व तप का आराधन दुःख-मुक्ति का सच्चा उपाय है | • मद्रास चातुर्मास (वि.सं. २०३७) पूज्यपाद ने १९ वर्ष की वय में जब आचार्य पद को सुशोभित किया, तब से ही मद्रास में व्यवसाय हेतु निवास कर रहे भंडारी परिवार, चोरड़िया परिवार, दुग्गड परिवार, सुराणा परिवार, बागमार परिवार, हुण्डीवाल परिवार एवं अन्य ग्राम - नगरों से यहाँ आये भक्तों की यह भावना थी कि रत्नवंश के जाज्वल्यमान रल, जिनशासन के उदीयमान सूर्य पूज्य हस्ती के पावन पाद विहार से तमिलनाडु समेत दक्षिण अंचल पवित्र पावन बने व हम मद्रास | स्थित प्रवासी मारवाड़ी भक्त अपने आराध्य गुरुवर्य के वर्षांवास से निरन्तर चार माह तक पावन दर्शन, वन्दन व मंगल प्रवचन श्रवण का लाभ लेकर व्रताराधन व ज्ञानाराधन में आगे बढ अपना आत्म-कल्याण कर सकें, साथ ही तमिल भाषी जनता भी अध्यात्म सूर्य हस्ती से जीवन के मर्म व धर्म के स्वरूप को समझ कर वीरवाणी के प्रसाद से लाभान्वित हो सके। अपने शासन के प्रारम्भिक काल में सतारा तक पधार कर भी आपका यहां पधारना नहीं हो सका। बुजुर्ग लोग अपनी आस हृदय में ही संजोये परलोकगमन भी कर गये। अब इस ज्ञान सूर्य का संयम जीवन के ६० वर्ष व्यतीत करने के उपरान्त इस सुदूर भूमि पर पदार्पण हुआ है। आपने अर्द्ध शताब्दी से भी अधिक समय से प्रतिपल सजगता, अपनी अद्वितीय प्रतिभा व शासन संचालन योग्यता से शासन की प्रभावना करते हुए आचार्य "
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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