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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १४१ | उच्चारण में क्या तकलीफ है ? परन्तु कर्माधीन प्राणी से यह भी नहीं होता ।" वहाँ से जडाऊ होकर आज चामुंडिया पहुँचे जहाँ रात्रि में रामदेव के चबूतरे पर विराजे । मेड़ता सिटी में बालकों के संस्कार हेतु करुणाकर ने फरमाया " आप में से बहुत से भाई पिता बने हुए | हैं। बालक के लालन-पालन व रक्षण में हजारों रुपया पूरा कर देते हैं। समझते हैं कि बच्चे को पढ़ा | लिखा शादी कर काम लायक कर देना हमारा फर्ज है, किन्तु उसको सद्ज्ञान देना, सुनीति एवं | सदाचारमय जीवन बनाना फर्ज नहीं है क्या ?" "आप समझ रहे हैं कि धर्मरक्षा एवं सत्शिक्षा साधुओं | काम है । किन्तु यह भूल है । चार-पाँच भी श्रावक हर स्थान पर ब्रह्मचारी वर्ग के रूप में सेवा दें तो संघ व्यवस्था उचित ढंग से चल सकती है।" प्रार्थना आदि के नियम कराये गए । वैशाख कृष्णा ७ को मेड़तासिटी से इन्दावड़ पधारे । यहाँ आपने अपने प्रवचनामृत में सद् गुरु का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए फरमाया “गुरु कर्म काटने का मार्ग बतलाते हैं, परन्तु कर्म स्वयं को काटना पड़ता है। जैसे किसी अटवी को पार करते समय अकेले यात्री को पीछे कदम रखता हुआ जवान साथी मिल | जाय तो साहस आ जाता है। वैसे ही जीव को सद्गुरु के सहयोग से बल मिलता | कच्चे मार्ग से | बायड़ होकर आप पुन्दलु पधारे, जहाँ ग्रामीणजनों को आपने बीडी, तमाखू छोड़ने की प्रतिज्ञा करायी । यहाँ क | पंजाबी बाबा ने अपनी निर्लेपवृत्ति का परिचय दिया । फिर कवासपुरा, चौकडी होकर कोसाणा पधारे तो ग्राम के जैन - अजैन अनेक भाई सम्मुख आए । व्याख्यान में फरमाया - " स्वार्थ एवं माया की चकाचौंध में भगवान को न भूलना । | भगवान को भूलने वाला मार्ग चूक जाता और पश्चाताप का भागी होता है । अपना काम व्यवहार में करते हुए भी प्रभु की आज्ञा का ध्यान रखना । ܕܙ प्रार्थना के पश्चात् प्रात:काल प्रस्थान करते समय भी चरितनायक प्रेरणा करना नहीं भूलते थे । यहाँ भी प्रेरणा की। फलतः तीन लोगों ने बीड़ी पीने के त्याग किए। बच्चों ने माह में पाँच दिन सामायिक का नियम लिया । पीपाड़ पहुँचने से एक मील पूर्व ही श्रावकों का आना प्रारम्भ हो गया। पहुँचने पर पार्श्वनाथ की प्रार्थना के पश्चात् | उद्बोधन दिया। कटारियाजी प्रभृति श्रावकों की भावना वैरागियों की बन्दोली निकालने की थी, पर गाजे-बाजे का | आडम्बर बढ़ाने की बात सामने आने पर आपने निषेध कर दिया । यहाँ पुखराजजी ने सजोडे शीलव्रत ग्रहण | किया। बुचकला, डांगियावास होते हुए टांका की प्याऊ पर रात्रिवास किया। फिर बनाड़ में जोधपुर के श्रावक | मोदीजी आदि सेवा में पहुंचे । जोधपुर पधारने पर कम से कम २५ बारहव्रती एवं २५ स्वाध्यायी तैयार होने के लिए | प्रेरणा I अक्षय तृतीया पर आपका प्रवचन सिंह पोल में हुआ। श्री कानमुनिजी म. भी साथ थे। इसी स्थान पर ३३ वर्ष पूर्व चरितनायक को आज ही के दिन आचार्य पद की चादर ओढाई गई थी । चरितनायक ने अपने मंगलमय उद्बोधन में दानधर्म और तपधर्म की विशिष्टता बतलाई। इस अवसर पर वर्षीतप के ११ पारणक हुए। श्रद्धालु | गुरुभक्त सुश्रावक श्री उमरावमलजी जालोरी ने अपने आराध्य गुरुवर्य के आचार्यपद दिवस पर सजोडे शील अंगीकार कर सच्ची श्रद्धा अभिव्यक्त की । वैशाख शुक्ला सप्तमी को आपने वर्धमान जैन कन्या पाठशाला भवन घोड़ों का चौक में अपने प्रवचन में फरमाया " साधु और श्रावक की श्रद्धा और प्ररूपणा में साम्य तथा स्पर्शना में अंतर है। गृहस्थ संसार - में रहते हुए संपूर्ण हिंसा आदि पापों का त्याग नहीं कर सकता है, फिर भी उसका विचार शुद्ध होता है,
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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