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________________ (१४० नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं नसीराबाद में आपने शान्तिनाथ की प्रार्थना के बाद नश्वरता का अर्थ बतलाकर प्रत्येक को शान्तिनाथ के समान वीतराग बनने की प्रेरणा की। चरितनायक ने स्वाध्याय की विशेष प्रेरणा की। आपने अपनी दैनन्दिनी में लिखा है - "तरुणवर्ग में इस समय ठीक जागरण दिखाई दिया। प्रार्थना का कार्यक्रम बराबर चलता है। स्वाध्याय का सिलसिला नहीं जमा है। माला, पाठ और भजन में ही अधिकांश समय बीत जाता है। हर सन्त एवं सतीवर्ग | इसके लिये प्रेरणा करे, यह अपेक्षित है। " । आचार्य श्री का यह कथन मात्र नसीराबाद के लिए नहीं, अपितु अनेक ग्राम नगरों के लिये प्रेरणाप्रद है। यहाँ पर व्याख्यान में फरमाया - “मनुष्य बच्चों के घरोंदे की तरह नाशवान को ही बनाने का प्रयत्न करता है। जो अपना और अविनाशी है उसको बनाने की फिक्र नहीं करता वह अज्ञान और मोह के पर्दे में सत्य को देख नहीं सकता। यदि इन पर्दो को दूर कर लिया जाय तो पूर्णता और प्रकाश दूर नहीं।" नसीराबाद से दातां होकर माखूपुरा के पास आने पर सूर्यास्त का समय हो जाने से आप होटल के पास ठहरे । प्रात: अजमेर के निकट पं. कुन्दनमुनि जी एवं सोहनमुनि जी सामने पधारे। यहां आप विष्णुदत्त जी के बंगले पर विराजे । महासती सुन्दरकंवरजी, महासती बदनकंवरजी एवं ज्ञानकंवरजी भी सेवा में पधारे । दोपहर बाद सन्तों के स्वाध्याय के अनन्तर सतीमण्डल से प्रश्नोत्तर हुए। जयपुर के श्रावक बोथरा जी, श्रीचन्दजी गोलेछा, ललवाणी जी, बडेरजी हरिश्चन्द्रजी, रतनलालजी सेठ एवं श्राविकाओं ने दर्शनलाभ कर चातुर्मास हेतु विनति रखी। हरिश्चन्द्र जी बडेर से श्रद्धा, दान और विदेश के व्यवहारों पर वार्ता हुई। ___संवत् २०२० चैत्र शुक्ला एकादशी गुरुवार प्रात:काल अजमेर में स्वामीजी श्री पन्नालालजी महाराज एवं कवि जी (अमरचन्दजी) म.सा. के साथ मधुर मिलन हुआ। आपने महावीर जयन्ती पर सामूहिक स्वाध्याय पूर्वक सामायिक की प्रेरणा दी। अनुशासन के सम्बन्ध में आपने स्वामीजी महाराज से हुई चर्चा में अपने विचार रखे-“अनुशासन का संघ में कठोरता से पालन हो। ढुलमुल नीति से संघ का तेज अक्षुण्ण नहीं रहेगा। वर्तमान में कई स्थानों पर स्मारक, मूर्ति और कीर्तिस्तम्भ बन रहे हैं। यह श्रमण संस्कृति के सर्वथा विपरीत है।" प्रमुख सन्तों से एक समाचारी और गणव्यवस्था पर वार्ता हुई। जयपुर, भोपालगढ, विजयनगर, बालोतरा आदि स्थानों के श्रावक विनति लेकर पुन: उपस्थित हुए। अजमेर में महावीर जयन्ती का कार्यक्रम उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। भगवान महावीर के जीवन की झांकी प्रस्तुत करते हुए उनके उपदेशों को अपनाने की प्रेरणा की गई। • जोधपुर की ओर जोधपुर में दीक्षा का प्रसंग सन्निकट था, अत: दो दिन के अल्पप्रवास के बाद आपका जोधपुर के लिये द्रुत गति से विहार हुआ। ढढ्ढा जी के बाग में एक दिन विराजने के अनन्तर फिर आपने दो दिन में पुष्कर किशनपुरा, गोविन्दगढ एवं आलणियावास फरस कर आगे के लिये विहार किया। आलणियावास में आपने प्रवचन में फरमाया -"प्रदेशी ने आत्म तत्त्व को समझकर तदनुकूल आचरण किया तो सद्गति का अधिकारी हुआ। इसी प्रकार आत्मविश्वास के साथ जीवन शुद्धि का अभ्यास करें।” पीसांगण के भाइयों की विनति समयाभाव के कारण स्वीकार नहीं की जा सकी। बडी रीयां में मध्याह्न के ध्यान के पश्चात् व्याख्यान में फरमाया -"लोग समझते हैं - गरीब धर्म नहीं कर पाते, परन्तु ऐसा समझना भूल है। धर्म और पाप के चार साधन हैं - तन, मन, वाणी और धन । दान से तिजोरी खाली होने का और व्रत से शरीर दर्बल होने का भय रहता है, पर शुभ विचार एवं प्रियवचन
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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