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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड • स्वाध्याय एवं सामायिक की प्रवृत्ति को बढ़ावा चैत्र शुक्ला तीज को घोड़ों का चौक स्थानक में दस दिवसीय स्वाध्याय शिक्षण शिविर सम्पन्न हुआ जिसमें ७१ स्वाध्यायियों ने भाग लिया। पूज्यप्रवर स्वाध्याय की प्रवृत्ति को जीवन के वास्तविक निर्माण हेतु आवश्यक मानते थे । उनके सान्निध्य में हुआ यह स्वाध्याय शिक्षण शिविर श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ का सम्भवतः | | प्रथम शिविर था । इस शिविर में अनेक नये स्वाध्यायी श्रावक तैयार हुए। स्वाध्यायियों को स्वाध्याय संघ के | माध्यम से पर्युषण पर्वाराधन हेतु अन्य क्षेत्रों में भेजना प्रारम्भ हुआ । यह प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती गई । पूज्यप्रवर | चरितनायक ने स्वाध्याय की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने हेतु पद्य रचनाएँ भी की, जो लोकप्रिय हुई | आपने स्वाध्याय की मशाल को घर-घर में दीप्त करने की प्रेरणा करते हुए फरमाया घर घर में अलख जगा देना, स्वाध्याय मशाल जला देना । अब जीवन में संकल्प करो...। तन धन दे जीवन सफल करो। अज्ञान अन्धेरा दूर करो, जग में स्वाध्याय प्रकाश करो । आपने बिना ज्ञान के क्रिया को शून्य बतलाते हुए कहा श्रमणों ! अब महिमा बतलाओ, बिन ज्ञान, क्रिया सूनी गाओ। 'गजमुनि' सद्ज्ञान का प्रेम भरो.... । उनका चिन्तन था कि प्रत्येक ग्राम, नगर एवं प्रान्त में स्वाध्यायी हो देकर प्राणों को शासन की, हम शान बढायेंगे। - हर प्रान्तों में स्वाध्यायी जन, अब फिर दिखलायेंगे || स्वाध्याय ही अज्ञान अन्धकार को दूर करने का उपाय है, इसलिए नित्य स्वाध्याय की प्रवृत्ति पर बल देते हुए | उन्होंने फरमाया - हम करके नित स्वाध्याय, ज्ञान की ज्योति जगायेंगे । जायेंगे || अज्ञान हृदय को धोकर के, उज्ज्वल मनुष्य : प्राय: आर्तध्यान एवं रौद्रध्यान में रहकर अपना जीवन व्यर्थ गँवाता है, स्वाध्याय को स्थान देने का आग्रह किया 1 ११९ श्री पूज्य उसे त्यागकर घर-घर में स्वाध्याय बढ़ाओ, तजकर आरत ध्यान । जन-जन की आचार शुद्धि हो, बना रहे शुभ ध्यान ॥ मन के मैल को दूर करने का सुगम उपाय है 'स्वाध्याय' । इसलिए आप जहाँ भी पधारे, जन-जन के आत्म-विकास एवं निर्मलता हेतु स्वाध्याय की प्रेरणा करते रहे. करलो श्रुतवाणी का पाठ, भविक जन मन मल हरने को । बिन स्वाध्याय ज्ञान नहीं होगा, ज्योति जगाने को । राग रोष की गाँठ गले नहीं, बोधि मिलाने को ॥ ज्ञान के साथ क्रिया को आगे बढ़ाने हेतु उन्होंने 'सामायिक' को सम्बल बताया। यहाँ पर सामायिक संघ की भी स्थापना की गई। सामायिक संघ का प्रारम्भ संवत् २०१६ में हो गया था। फिर गाँव-गांव, नगर - नगर में यह संदेश प्रसारित करने का प्रयास किया गया, ताकि नियमित सामायिक करने वालों की संख्या में अभिवृद्धि हो ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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