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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं हस्तीमल जी म. को उस समय लघुवयस्क होने पर भी होनहार और आचार्य पद के योग्य समझकर अपने उत्तराधिकारी आचार्य के रूप में मनोनीत कर अभिप्राय पत्र लिखवा दिया था। यह वही नगर है जहाँ वि. सं. १९८३ की श्रावणी अमावस्या को आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. ने पेटी के नोहरे में स्वर्गारोहण किया। उस समय हस्तीमल जी म.सा. की अवस्था १६ वर्ष से भी कम मात्र १५ वर्ष ६ मास और १६ दिन की थी। आचार्य श्री की इच्छा और उनके द्वारा किये गये मनोनयन के अनुसार जब आचार्य पद की चादर प्रदान की बात संघ के समक्ष आई तो उस समय स्वयं श्री हस्तीमल जी म. ने अपने अध्ययन को सम्पन्न करने के लिए समय मांगा, पंडित श्री दुःखमोचन जी झा ने भी वर्ष डेढ़ वर्ष तक अध्ययन आवश्यक बताया था। चतुर्विध संघ ने मुनि श्री की दूरदर्शिता और श्लाघनीय विवेकपूर्ण इच्छा को बहुमान देकर इन्हें अध्ययन का अवसर दिया और संघ संचालन की व्यवस्था का दायित्व मुझे सौंपा। मुनि श्री हस्तीमल जी महाराज अपना अध्ययन सम्पन्न कर सुयोग्य विद्वान् बन गये हैं। इनके सर्व विदित विनय, विवेक, वाग्वैभव, प्रत्युत्पन्नमतित्व, विलक्षण प्रतिभा, कुशाग्र बुद्धि क्रियापात्रता, अथक श्रमशीलता, कर्त्तव्यनिष्ठा, मार्दव, आर्जव, निरभिमानता आदि गुणों पर हम सबको गर्व है। ये सुयोग्य आचार्य के आवश्यक सभी गुणों से सम्पन्न हैं। आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के द्वारा कृत इस मनोनयन की अन्तर्मन से श्लाघा करते हुए उनकी अन्तिम इच्छा को मूर्त रूप देने में हम अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव कर रहे हैं। आज हम सब इन्हें आचार्यश्री रत्नचन्द्र जी महाराज की सम्प्रदाय के सातवें पट्टधर के रूप में| आचार्यपद पर प्रतिष्ठित करते हैं। चतुर्विध संघ अब इनकी आज्ञा में रहकर ज्ञान दर्शन चारित्र की अभिवृद्धि करे। सर्वथा सुयोग्य मुनिवर को अपने आचार्य के रूप में पाकर हम सब अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं और कामना करते हैं कि आप शतायु हों । सुदीर्घकाल तक संघ को अभ्युदय, उत्थान और उत्कर्ष के पथ पर अग्रसर करते रहें। हस्तीमल जी म.सा. वय से भले छोटे हैं, किन्तु गुणों एवं पद से बहुत बड़े हैं। मुझे भी आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करना है और आप सब सन्त-सतियों तथा श्रावक-श्राविकाओं को भी ऐसा ही करना है। इस गरिमामय | संघके संचालन का दायित्व मैं आज श्री हस्तीमल जी म.सा. को सौंपते हुए अत्यन्त हर्षानुभव कर रहा हूँ। वे युगों | युगों तक चतुर्विध संघ का कल्याण एवं मार्गदर्शन करें।” ___इस प्रकार आशीर्वचन के साथ स्थविर श्री सुजानमल जी महाराज और स्वामीजी श्री भोजराज जी महाराज आदि वयोवृद्ध सन्तों ने गरिमापूर्ण एवं महिमामंडित धवलवर्णा आचार्यश्री शोभाचन्द्रजी म.सा. की सुरक्षित रखी पूज्य पछेवड़ी मुनिवर श्री हस्तीमल जी म. के वृषभतुल्य सबल समर्थ स्कन्धों पर ओढाई और 'नमो आयरियाणं' का सुमधुर समवेत घोष उद्घोषित करते हुए उन्हें विधिवत् आचार्य पद पर अधिष्ठित किया। आचार्य पद की चादर को ओढ़ने के साथ ही मुनि श्री हस्तीमल जी 'आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज' के रूप में संघ के जनगण-मन अधिनायक हो गये। सिंहपोल का सारा सभा-मंडप भगवान महावीर, आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म, आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म. एवं सप्तम पट्टधर आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज की जय जयकार से गुञ्जित हो उठा। ____ रत्नवंश के सप्तम आचार्यपद पर अधिष्ठित महामनस्वी पूज्य श्री हस्तीमल जी महाराज ने अपनी भावाभिव्यक्ति में आभार प्रकट करते हुए फरमाया “आज इस वेला में चतुर्विध संघ ने श्रद्धा व समर्पण की प्रतीक यह चादर ओढाकर मुझे परम उपकारी | महनीय गुरुदेव द्वारा सौंपे गए दायित्व निर्वहन का आदेश दिया है। परम पूज्य गुरुदेव की आज्ञा व संघ की अपेक्षाओं पर खरा उतर सकूँ इस क्षण से मेरा यही उत्तरदायित्व होगा। तीर्थेश श्रमण भगवान महावीर द्वारा
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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