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(७) ऋषभदेव को वस्त्राभूषणों से अलंकृत देखकर केवल उनके चरण-कमलों पर ही पानी डाल दिया और अभिषेक की प्रक्रिया को सम्पन्न किया। इन्द्र ने यह देखकर हर्षित हो साधुवाद देते हुए कहा, बहुत सुन्दर । ये बहुत विनीत पुरुष हैं। इस प्रकार उनके विनय को देखकर इन्द्र ने नवनिर्मित नगरी का नाम विनीता रखा। आवश्यक नियुक्ति के अनुसार जब यौगलिक लोगों के जीवकोपार्जन का कोई साधन नहीं रहा तब वह घबराकर ऋषभदेव के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर नमस्कार कर विनम्र भाव से अपनी वस्तुस्थिति का परिचय कराया और सहयोग की याचना करने लगे । तब ऋषभस्वामी ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा कि अपराधी मनोवृत्ति न पनपे तथा मर्यादा का यथोचित पालन हो सके, इसके लिए दण्ड-व्यवस्था होती है । जिसका कि संचालन स्वयं राजा करता है । लेकिन राजा का पहले राजपद पर अभिषेक किया जाता है।' ___ यह सुनकर यौगलिक लोगों ने कहा कि स्वामी आप ही हमारे राजा बन जाइये। इस पर ऋषभस्वामी ने कहा कि तुम नाभिकुलकर के पास जाओ और राजा की माँग करो, वह तुम्हें राजा देंगे। यह सन यौगलिक जब नाभि कुलकर के पास गये और विनम्र भाव से वंदन कर वस्तुस्थिति का परिचय कराया। नाभि कुलकर ने यौगलिकों की विनम्र भावना को सुना और कहा कि मैं तो अब वृद्ध हो चुका हूँ अतः तुम लोग ऋषभ को राजपद देकर अपना राजा बना लो।
नाभि कुलकर की आज्ञा प्राप्त कर यौगलिक जन बहुत प्रसन्न हए और ऋषभस्वामी का अभिषेक करने के लिए जल लेने पद्मम सरोवर पर गये और कमल के पत्तों में जल लेकर आए। इसी बीच इन्द्र का आसन चलायमान हुआ । इन्द्र ने अवधिज्ञान से देखा और सर्वऋद्धि सहित सभी लोकपाल, देवगणों के साथ आया और ऋषभ स्वामी का राज्याभिषेक किया, और उन्हें राजा योग्य आभूषणों से विभूषित किया। जब यौगलिक
१. आवश्यक नि० पृ० ५५ गा० १९७ २. वही गा० १६८ ३. आ० नि० पु ५६ गाथा १६६, आ० चूर्णी पृ० १५४
त्रि० ब० पु० च० पर्व १ सर्ग २ पृ० १६८