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'(७४) - जैन मान्यतानुसार सात और चौदह कुलकरों का उल्लेख हुआ है। जिनका वर्णन हम आगे कर चुके हैं । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में १४ कुलकरों का उल्लेख आया है।' इन कुलकरों में से प्रथम पाँच कुलकरों की "हक्कार" दण्डनीति थी और छठे कुलकर से दसवें कलकर तक "मक्कार" दण्डनीति प्रचलित थी । ग्यारहवें से पन्द्रहवें ऋषभस्वामी तक “धिक्कार" दण्डनीति प्रचलित थी। (ऋषभ स्वामी को कुलकर भी माना गया है ।) दण्डनीतियों के बारे में विस्तृत जानकारी हम अगले अध्याय में देंगे।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार समय ने करवट ली । आवश्यकता पूर्ति के साधन सुलभ नहीं रहे। यौगलिकों में क्रोध, मान, माया, लोभ की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। हाकारः माकारः दण्डनीतियों का पूर्ण रूप से उल्लंघन हो गया और जब अन्तिम कुलकर नाभिराज के समय प्रचलित हई “धिक्कार" दण्डनीति का प्रजा उल्लंघन करने लगी तथा कल्पवृक्षों से प्रकृति सिद्ध जो भोजन प्राप्त होता था वह अपर्याप्त हो गया। जीवकोपार्जन का कोई साधन अवशेष नहीं रहा तब युगलिक लोग घबराने लगे। ऐसी स्थिति में इन्द्र महाराज ने अयोध्यापुरी आकर ऋषभस्वामी का राज्याभिषेक किया। तित्धोगाली पडन्नय के अनुसार जब अनेक योगलिक लोग नीति का उल्लंघन करने लगे तो प्रमुख लोगों ने ऋषभदेव के सम्मुख जाकर निवेदन किया (अर्थात् अपनी स्थिति का परिचय कराया) ऋषभदेव ने कहा कि नीति का अतिक्रमण करने वालों को राजा दण्ड देता है। यह सुनकर युगलिकों ने कहा कि “हमारा भी राजा हो।' ऋषभ स्वामी ने कहा-“तुम कुलकर नाभिराज से जाकर माँग करो।" योगलिकों द्वारा कुलकर नाभि के समक्ष राजा की माँग किए जाने पर उन्होंने कहा कि “ऋषभ तुम्हारा राजा हो ।” अवधिज्ञान के उपभोग से यह सब वृतान्त जानकर इन्द्र वहाँ उपस्थित हुआ। देवराज ने भगवान ऋषभदेव को नरेन्द्रों के योग्य मुकुटादि सभी अलंकारों से विभूषित कर उनका राज्याभिषेक किया। यौगलिक पुरुष भगवान् ऋषभदेव के राज्याभिषेक के लिये विसिनि (अर्थात् नलिनी) पत्रों में पानी लेकर आये। तब उन्होंने
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्ष० २० १० ११८. २. तित्योगाली पइन्नय पृ० ६४ गा० २८३. ३. वही
गा०२८४ ४. तित्थोगाली पइन्नय पृ० ८४ गा० २८५