________________
(१३)
उत्तरकाण्ड में न्यायाधीशों के लिए "धर्म-पालक" शब्द प्रयोग में किया गया है। अपराध प्रमाणित होने पर जैसा अपराध होता उसी के अनुसार दण्ड दिया जाता था।
रामायण के पश्चात् अब हम नीतिशास्त्र में निहित राजनीति का अवलोकन करेंगे । कामन्दकीय नीतिसार की रचना कौटिल्य अर्थ-शास्त्र के आधार पर ही की गई है।' कामन्दकीय नीतिसार में राज्य के अंगों का वर्णन भी कौटिल्य अर्थशास्त्रानुसार ही किया गया है। कामन्दक ने इसके साथ एक कल्पना संयोजित की है जो कि इस सम्बन्ध में विशेषतापूर्ण मालूम होती है। और जिसका कौटिल्य के अर्थशास्त्र में केवल आभास ही पाया जाता है । जैसा कि एक स्थान कर कामन्दक ने राज्य के सात अंगों के लिये “परस्परोपकारी" शब्द का उपयोग किया है। आगे चलकर उसने अपने आशय को इस प्रकार स्पष्ट किया है कि यदि किसी भी एक अंग में न्यनता आ जाये तो सार्वभौमिकता नहीं चल सकती। अर्थात् राजसत्ता के सब अंगों का केन्द्रीभूत सहयोग है।
जब हम राजत्त्व के साधारण रूप की कल्पना कामन्दकनीतिसार में देखना चाहते हैं तब हमको ज्ञात होता है कि इसने प्राचीन आचार्यों की कल्पना को ही अनवहित रीति से लिखा है । कामन्दक ने राजा के पद को विशेष महत्त्व प्रदान किया है । उसने बतलाया है कि जिस राज्य में राजा गम्भीर होगा तो प्रजा स्वतः ही गम्भीर हो जायेगी लेकिन यदि कोई मंत्रिगण या राज्य का कोई भी पदाधिकारी गम्भीर होगा तो राजा उस पर नियंत्रण कर सकता है । राजा के बारे में यह भी कहा है कि राजा को सर्वप्रथम शिक्षित होना चाहिए, उसके पश्चात् उसके नीचे वाले पदाधिकारियों को, बाद में उसके पुत्र को शिक्षित होना कामन्दक नीतिसार के सर्गों में बताया गया है। राजा को स्वयं पर अनुशासित होने का निर्देश भी दिया गया है। प्रजा की रक्षा का सम्पूर्ण भार राजा 1. , U.N. Ghoshal : A History of Indian Political Ideas Oxford ♡ University Press 1959, Page 374. २. वही ३. वही ४. U.N. Ghoshal: A History of Indian Political Ideas
Oxford Univeraity Press, 1959, Page 374, ५. वही पृ० ३७५.