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(६६) पाँच अंगों में निर्णीत संधि एवं विग्रह-युद्ध के रहस्य का ज्ञाता होना चाहिए।'
.. जैन पुराणों के अलावा जनेतर पुराणों में तथा ग्रंथों में भी राजा के गुणों पर प्रकाश डाला गया है।
: अर्थशास्त्र में राजा के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि राजा को (१) उच्चकुल में जायमान (२) देवसम्पन्न, बुद्धिसम्पन्न, सत्त्व सम्पन्न (सम्पत्ति तथा विपत्ति में धैर्यशाली), वृद्वदशी (विद्या और वृद्धजनों का सेवक), धर्मात्मा, सत्ववादी, अविसंवादक; कृतज्ञ, विनयी, स्थूललक्ष, महोत्साह, शक्य सामन्त; दृढ़बुद्धि आदि से युक्त होना चाहिए।'
____ याज्ञवल्क्य स्मृति में भी राजा को उत्साही-स्थूल-लक्ष्य, कृतज्ञ, वृद्धसेवी, विनय-युक्त, कुलीन, सत्यवादी, पवित्र, अदीर्घसूत्री, स्मृतिवान, प्रियवादी, धार्मिक, अव्यवसनी, पण्डित, बहादुर, रहस्यवेत्ता, राज्यप्रबन्धक, - आत्म विद्या और राजनीति में प्रवीण बताया गया है।
वाल्मीकि के अनुसार राजा गुणवान्, पराक्रमी, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्यवक्ता, दृढ़प्रतिज्ञ, सदाचारी, समस्त प्राणियों का हितसाधक, विद्वान्, सामर्थ्य-शाली, प्रियदर्शन, मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कान्तिमान, अनिंदक और संग्राम में अजय योद्धा होता है।
उपर्युक्त गुणों के आधार पर कहा जा सकता है कि राजा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में सर्वगुण सम्पन्न होता था।
१. भूपतिः पद्मगुल्माख्यो दुष्टोपायचतुष्ट्यः ।
पङचाङ् गमन्त्रनिर्णीतसन्धिविग्रहतत्त्ववित् ॥ महा पु० ५६/३ २. अर्थशास्त्र ६/१, पृ० ४१५. ३. याज्ञवल्क्य स्मृति, राजधर्म प्रकरण श्लोक ३०९-१०, ४. रामायण : वाल्मीकि १/१/२-४. ....