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________________ ला उतारा और पारितोषिक व पोशाक इत्यादिसे यथोचित सत्कार कर उन्हें उनके घरकी ओर विदा किया। इस घटनाका समय विक्रम संवत् १५२० की आसपासका है । विशेष परिचयके लिये लघुपोशालीय गच्छ पट्टावली और संग्रामसोनीकृत बुद्धिसागर ग्रंथ देख लेना ठीक है । इस पुरुष रत्नकी उत्पत्ति इसो.मांडवगढमें थी ?।। सहस्रावधानी आचार्य श्रीमुनिसुंदर मूरिजोके पशिष्य आचार्य श्रीलक्ष्मीसागर सूरिजीने जिन ११ सुयोग्य मुनियोंको अपने हाथसे आचार्य पदवी प्रदान की थो। उनमेंसे एक आचार्य महाराजका नाम था साधुरत्नसूरि । ये आचार्य बडे वैराग्यवान थे, इन. का जीवन चरित्र बडा ही रोचक और हृदयद्रावी है। ___ ये सूरि महाराज अपने परिवारसहित मांडवगढ पधारे । इनके धर्मोपदेशकी नगरमें बडी धूम मचगई. थी, कई धर्मात्मा लोगोंने अनेक धर्म कृत्यों द्वारा अपना अपना जीवन सफल किया। इसी नगरमें जावडशाह नामा एक श्रीमाली साहूकार रहता था। उस समय उसकी बराबरी करनेवाला अन्य कोई श्रीमाली वहां नहीं था। इसी लिये जावडशाह-'श्रीपालभूपाल' और 'लघुशालिभद्र' इन दो उपनामोंसे संबोधित किया जाता था। इस
SR No.032336
Book TitleMandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1923
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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