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________________ सका फल फूल कुछभी नहीं था । बाहशाहने बागवानसे पूछा, इस वृक्षकी यह दशा क्यों ? मालीने कहा-जहांपनाह ! यह वृक्ष वंध्य है। बादशाहने कहा, तो फिर इसके रखनेसे क्या लाभ ? इसे कटवा दो। पासमें सोनीजी भी खडे थे, आप राजमान्य भी थे। अपने अर्ज करदी कि, बराय महरबानी आप इसे खडा रहने दें, मैं इसको समझा दूंगा। मैं उम्मीद करता हूं यह वृक्ष एक सालके अर्सेमें फल देगा ! बादशाहने सोनीजीके विनयको मान लिया। ___ अब सोनीजी रोज वागमें जाकर स्नान करते हैं और अपनी धोतीका पल्ला उस आमके वृक्षकी जडमें निचोडते हैं । साथमें हाथ जोडकर प्रार्थना करते हैं कि, हे वनदेवतामहाराज! मैंने जन्मसे लेकर आज पर्यंत परस्त्रीका संसर्ग नहीं किया है, अपने ब्रह्मचर्यको प्राणोंसेभी अधिक प्रिय मानकर सुरक्षित रखा है। यदि मेरे ब्रह्मचर्यका सच्चा प्रभाव है तो यह वृक्ष फल दे। हुआ भो यही-दूसरे वर्ष सब वृक्षांसे पहले उस वृक्षके पुष्प आया तथा सबसे प्रथम ही फल भीआये । बागवानने कुछ फल बादशाहको भेट किये, और सब बात सुनाई। बादशाह बहुत खुश हुआ और सोनीजीको बडे आदर सत्कार पूर्वक हाथी परबैठा सारे नगरमें बाजे गाजेके साथ फिराकर राज दरबारमें
SR No.032336
Book TitleMandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1923
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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