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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • तपाया है, स्थिर और दृढ़ किया है । ०००० सद्गुरुदेव युगप्रधान आचार्य हैं । युग की समस्त चिन्तन परम्परा का उनमें आवास है । सभी धर्म, सभी जाति, सभी विचार उनमें एकरस हैं । वे तन्मय हैं अतः एकनिष्ठ हैं । उनका ज्ञान एकदेशीय नहीं, सार्वभौम है । चरित्रपूत है । भावनाएँ पवित्र हैं, कार्य अनुसरणीय है, ज्ञान स्मरणीय है। वस्तुतः त्रिकालदर्शी समय और स्थान से परे होता है । जाति और धर्म से पृथक् होता है। अतः मानवकृत वर्गीकरण की संकुचित परिधि को पार कर निःसीम ब्रह्मांड उनके लिये हस्तामलकवत् है ।"१ ऐसे योगीन्द्र, युगदृष्टा युगप्रधान महामानव को, बिना सदेह मिले भी, अंतर्दृष्टि से पहचानकर, उनके आत्मसाक्षात्कारमय अलौकिक आत्मपथ पर विचरण कर रहे दूसरे एक नूतन खोजी दर्शक साधक इस प्रकार वर्णित करते हैं - आज वर्तमान युग में हमारा सारा साधु समाज जहाँ पूजा-प्रतिष्ठा-उत्सव-महोत्सवों और बाहरी क्रियाकांडों के बहाव में बहा जा रहा है, वहाँ यह साधु दिन में एकाध बार आयंबिल का रुखासूखा टुकड़ा खाकर एकान्त गिरिकंदराओं में मौन विचरण कर साधना की गहराईयों में उतरकर आत्मानुभूति के मोतियों को पाता रहा है.... आत्मज्ञान के शिखरों को छूता रहा है... महावीर और राजचन्द्र के 'मूल मारग' को पाकर उजागर करता रहा है।... ऐसे साधना-सिद्ध साधु-साधक आज कहाँ ?"२ यही बात इस नूतन खोजी दर्शक साधक ने, सहजानंदघनजी के पदों की पुस्तक 'सहजानंद सुधा' की भूमिका में लिखी है बड़े भावोल्लास के साथ - ___ योगीराज सहजानंदजी को मैं कलियुग में साधना का प्रतीक मानता हूँ। मेरी समझ से, साधना के लिए उन्होंने जितने प्रयत्न किये वह अपने आप में अनुकरणीय हैं । साधना के लिए किस क्षेत्र का चयन किया जाए इसके लिए उन्होंने देश के कई स्थानों का भ्रमण किया । वे अनेक स्थानों पर तपे, पर अन्ततः हम्पी का अरण्य और कन्दराएँ उन्हें रास आईं । मोकलसर की जिस सुनसान गुफा में वे तपे थे उसे देखकर मुझे लगा कि इस भयंकर एकांत में रहकर साधना करना तभी सम्भव है, जब कोई व्यक्ति भय और लालसाओं पर विजय प्राप्त कर चुका हो । सिंह-भालू की बात न भी उठाएँ, पर इतना तो तय है कि वहाँ सर्प, बिच्छु, नेवले तो स्वच्छन्द विचरते ही थे । योगीराज सहजानंद के अध्यात्मप्रिय दृष्टिकोण और जीवन-शैली से मैं प्रेरित तो था ही, हम्पी में रहने से मुझे अहसास हुआ कि ये वास्तव में निर्भय और अध्यात्मनिष्ठ थे । स्वयं मैंने वहाँ बाघ को देखा है । यह अलग बात है कि मैं बंद कमरे में सुरक्षित था, जब कि सहजानंदजी वहाँ तब रहे थे जब वहाँ कोई मकान या कमरा नहीं था। १. 'सर्वदर्शी' द्वारा लिखित "संक्षिप्त परिचय" : "अध्यात्म-योगी सन्तप्रवर" । २. इस लेखक का यात्रा-लेख “संबोधिधाम की अभिनव आत्मबोध-भूमि पर" : पृ. ३ (34)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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