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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • निर्माणकार्य का विकास.... आगंतुकों हेतु निःशुल्क भोजनव्यवस्था .... भक्ति-सत्संग में जनसंख्या का बढ़ना.... और जैनधर्म की प्रतिष्ठा की ध्वनि का इस प्रदेश के शैवों के कानों में टकराना.... ! उपसर्गकारक-विरोधी : विधर्मी भी स्वधर्मी भी !' इस क्षेत्र में शैवों का एक छत्री राज्य था । उन्होंने जैन संप्रदाय के नामों-निशान मिटा दिए थे । उन लोगों में इन जैनों के पैर अचानक जमते हुए देखकर खलबली मच गई । 'हस्तिनां ताड्यमानेऽपि, न गच्छेत् जिनमंदिरम्' - इस अपने विरासत में प्राप्त सिद्धांत को वफ़ादार रहने वे संगठित हुए और अपने विरासती माने हुए शत्रुओं को उभरने से पूर्व ही नष्ट कर देने के लिए वे कटिबद्ध हुए । उन्हें उत्तेजित करनेवाला था होस्पेट निवासी सिरोही-मारवाड़ का एक धनसंपन्न सुनार । उसने तन-मन-धन खर्च करने के लिए अपने जाति-भाइयों को और लड़ाई लड़ने के लिए स्थानिक कन्नडभाषी लोगों को सज्ज किया । शाम, दाम और भेदनीति के द्वारा जब वे सफल नहीं हुए तब उन्होंने दंडनीति अपनाकर मारपीट और लूटपाट के द्वारा आश्रमवासियों को भगा देने के लिए गुंडों की एक टोली भेजी । परंतु आश्चर्य.... ! गुफामंदिर के आगे वह भीड़ जमा तो हुई, किन्तु गुफा के द्वार खुले हुए होने पर भी भीतर कोई प्रवेश ही नहीं कर पाया... !! ... उनके पैर रुक गए, हृदय काँपने लगे और वे बेचारे घबराकर चुपचाप पलायन कर गए..... !!! आखिर राज्याश्रय पाने हेतु वे यावत् मिनिस्टरों पर्यंत पहुँचे । “हमारे महादेवजी को अदृश्य करके एक जैन महात्मा ने हमारी दत्तात्रय गफा का कब्जा ले लेकर हम पर अन्याय किया है.... आशय की पत्रिकाएँ छपाकर उन्होंने बहुत प्रचार किया । मैसुर राज्य, मद्रास राज्य और आंध्र प्रदेश से लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी इस आश्रम की मुलाकात हेतु । गुप्तचर और संरक्षक पुलिस विभाग के पदाधिकारियों, यावत् मिनिस्टरों तक का बिना निमंत्रण के इस आश्रम में, पधारना चल पड़ा... । परन्तु आश्चर्य ! परमकृपाळु की कृपा से किसीने न तो उपालम्भ का एक शब्द भी उच्चारित किया, न अप्रीति दर्शाई, विपरीत इसके उन सत्ताधीशों ने प्रभावित होकर, इस रत्नकूट पर जो सरकारी भूमि थी वह इस आश्रम को सादर भेंट की।* उस भेंट में मुख्य योगदान था मैसुर राज्य के तत्कालीन गृहप्रधान श्री आर.एम. पाटील का । तब से वे प्रतिवर्ष आश्रम की मुलाकात पर आते रहते हैं। अभी उन्होंने जलसुविधा हेतु सरकार की ओर से नलयोजना भी मंजुर की है। "बहु उपसर्गकर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहीं.... ।" क्रोध नहीं, प्रतिक्रिया नहीं, उल्टे करुणावश रक्षण-प्रदान । देखें, गुरुदेव, कितने प्रशांत करुणावान, कितने महान ॥ - प्र. ईसा मसीह की घटना का तादृश्य : जो विरोध करने आए, वे भक्त बन गए। "Those who came to scoff, remained to pray". (27)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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