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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • कल आपके स्मरण के साथ एवं आशीर्वाद की अपेक्षा के साथ, रवीन्द्र स्मृति के उपलक्ष में "रवीन्द्र संगीत प्रतिष्ठान" तथा "ध्यान संगीत" 'Music For Meditation' का प्रारम्भ करने जा रहे हैं। टैगोर तथा मल्लिकजी के भक्तिसंगीत का इसके साथ सम्बंध है। आशीर्वाद दे कर अनुग्रहित करें । पूर्णिमा पर पुनः आने की भावना है । वहाँ सब को वन्दन प्रताप के भाववन्दन संलग्न-देवशीभाई का पत्र (20) श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम दिनांक : 09-08-1970 सद्गुणानुरागी मुमुक्षुबंधु श्री प्रतापभाई सपरिवार, __ अंगत पत्र सम्प्राप्त हुआ । पढ़ कर प्रसन्नता हुई । इस देह में अब भी व्याधिदेव की कृपा के कारण व्यवस्थित आसन पर बैठा नहीं जाता, अतएव लिखने में तकलीफ होती है, तथापि कभी कभी पत्रोत्तर देना अनिवार्य होने पर लेखनक्रिया करनी पड़ती है। वैसे दर्द में कमी है । केवल बाह्य औषधि प्रयोग चल ही रहा है। श्री चन्दुभाई के लिए विपरीत परिस्थिति में समरस रहने के लिए आपने बल माँगा यह निष्कामभावना अभिनन्दनीय है । आत्मार्थी का यही कर्तव्य है। यदि निरन्तर प्रभुस्मरण की आदत डाली जाये तो अदृश्य शक्ति के द्वारा अनुपम बल अवश्य प्राप्त होता है ऐसा इस आत्मा को विश्वास है अतः भाई को उस दिशा की ओर अंगुलि निर्देश करें । यह आत्मा परमकृपाळु के प्रति अंतरंग प्रार्थना करती है कि आप सब के अन्तःकरण में उक्त आत्मबल विकसित हो और आत्मा परिस्थितियों के प्रभाव से बचे । ॐ आपके मित्र श्री देवशीभाई के विषय में जो लिखा था तथा उनकी अन्तरंग योग्यता समझने के लिए उनका पत्र अपने पत्र के साथ भेजा, वह पढ़ा । यह आत्मा सुपात्र लगती है। अतः उन्हें यहाँ काम के लिए बुलाना उचित लगता है। अगर वे आश्रम की व्यवस्था का कार्य हाथ में लेने के लिए तैयार हैं तो सोने में सुहागा । परन्तु एक शर्त के साथ-अपना फर्ज अदा करने के साथ साथ (आश्रम का काम सम्हालते हुए) अवकाश के समय में आत्मसाधना करें, जिससे दोनो कार्यों में प्रगति हो सके । केवल आत्मसाधना में लीन रह सकें ऐसी उनकी स्थिति नहीं है इसलिए कुछ प्रवृत्ति तो आवश्यक है ही । अतः उन्हें इस शर्त के साथ शीघ्र यहाँ भेजने का प्रबंध करें । उचित पारिश्रमिक अवश्य मिलेगा । इस विषय में चन्दुभाई के साथ बात कर के उनकी सलाह भी लें, क्योंकि आश्रम के प्रमुख होने के नाते उनका यह उत्तरदायित्व है। गत गुरुवार को हिरजीभाई यहाँ से सपरिवार बेंगलोर गये । उनके साथ पत्र भेजा था, जो प्राप्त हुआ ही होगा । माताजी स्वस्थ एवं प्रसन्न हैं । आप सब को हार्दिक आशीर्वाद प्रेषित किये हैं। वहाँ आपके परिवारजन, मित्रों एवं साधर्मिक जनों को हार्दिक आशीर्वाद ज्ञात करायें एवं स्वीकार करें । ॐ शान्तिः । सहजानन्दघन के हार्दिक आशीर्वाद (109)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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